यह कैसी विडम्बना है
कि हम सहज अभ्यस्त हैं
एक मानक पुरुष-दृष्टि से देखने
स्वयं की दुनिया

मैं स्वयं को स्वयं की दृष्टि से देखते
मुक्त होना चाहती हूँ अपनी जाति से
क्या है मात्र एक स्वप्न के
स्त्री के लिए- घर सन्तान और प्रेम?
क्या है?

एक स्त्री यथार्थ में
जितना अधिक घिरती जाती है इससे
उतना ही अमूर्त होता चला जाता है
सपने में वह सब कुछ

अपनी कल्पना में हर रोज़
एक ही समय में स्वयं को
हर बेचैन स्त्री तलाशती है
घर, प्रेम और जाति से अलग
अपनी एक ऐसी ज़मीन
जो सिर्फ़ उसकी अपनी हो,
एक उन्मुक्त आकाश
जो शब्द से परे हो,
एक हाथ
जो हाथ नहीं
उसके होने का आभास हो!

निर्मला पुतुल
निर्मला पुतुल (जन्मः 6 मार्च 1972) बहुचर्चित संताली लेखिका, कवयित्री और सोशल एक्टिविस्स्ट हैं। दुमका, संताल परगना (झारखंड) के दुधानी कुरुवा गांव में जन्मी निर्मला पुतुल हिंदी कविता में एक परिचित आदिवासी नाम है। निर्मला ने राजनीतिशास्त्र में ऑनर्स और नर्सिंग में डिप्लोमा किया है।