‘Appeal’, a poem by Rahul Boyal

जज साहब!
क्या एक कवि अपनी कविता कह देने के बाद
उसे वापस ले सकता है?
यूँ तो मैं जानता हूँ कि
वाणी तरकश से निकला तीर है
कभी लौटता नहीं।

यदि ऐसा सम्भव हो तो एक गुज़ारिश है मेरी
मैं अपनी तमाम प्रेम कविताएँ रद्द करवाना चाहता हूँ।
क्या मेरी यह अपील स्वीकार्य है?

मैंने जो शब्द प्रेम में कहे,
उन शब्दों में मेरी ज़ुबान की कोई भूमिका न थी
वो सब आत्मा ने रचे थे

जिन जगहों पर मैंने वो पढ़ीं,
वहाँ मैं कभी था ही नहीं
वहाँ मेरे अहसास भ्रमण करते थे

जिसके लिए ये कविताएँ गुनगुनायी गयीं
उसको इसका आज तक इल्म नहीं
यदि है भी… तो भी
उसकी तरफ़ से इनका मोल सिफ़र है।

मेरी प्रेम कविताओं को रद्द कर दीजिए जज साहब!
यह केवल मेरी अपील न जानिए जज साहब!
इसे प्रेम में तबाह हुए
तमाम प्रेमियों की गुहार समझा जाए।

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राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]

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