‘Aur Sard Dharti Garm Ho Gayi’, a poem by Mahima Shree

वो ठिठुरता हुआ उकड़ू होकर
बैठने के प्रयास में सिकोड़े जा रहा था अपने हाथ-पैरों को
बीच-बीच में झालमुढ़ी खरीदने आते ग्राहकों को
कँपकँपाते हाथों से नमक तेल मिर्च डाल उसे मिलाता, फिर उन्हें देते हुए
ठण्ड से सूखे पड़े पपरीयुक्त होंठो से सायास
मुस्कुराने का करता प्रयास

मैं देखती अक्सर उसे उधर से गुज़रते हुए
अख़बार बिछाए सर्द धरती की गोद में बैठा होता
मोटी फटी गंजी के साथ सिलाई उघड़ी कमीज़ पहने
जो उसे कितनी गर्मी देती थी भगवान ही जाने

एक दिन रूमानियत से भरी गुलाबी ठण्ड को सहेजना चाहती अपनी यादों में
चल पड़ी बाज़ार

जब मैं ख़रीद रही थी
मूँगफली, गजक और रेवड़ियाँ
कर रही थी मनचाहा मोल-भाव

तभी मैंने कहते सुना उसे अपने एक फेरीवाले संगी से –
‘कल रात अलाव की चिन्गारी छिटकी औ सारी बस्ती होम हो गयी
सब राख हो गया
सर्द धरती तो गर्म हो गई पर
अपना जीवन तो ठण्डा हो गया’

गर्म कपड़ो में सर से पाँव तक ढकी मैं काँपने लगी
वह और भी गर्मजोशी से आवाज़ देकर झालमुढ़ी बेचने लगा

गुलाबी सर्दी जो अभी बड़ी ही रूमानी लग रही थी
कठोर और बेदर्द लगने लगी।

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महिमा श्री
रिसर्च स्कॉलर, गेस्ट फैकल्टी- मास कॉम्युनिकेशन , कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन कविता,गज़ल, लधुकथा, समीक्षा, आलेख प्रकाशन- प्रथम कविता संग्रह- अकुलाहटें मेरे मन की, 2015, अंजुमन प्रकाशन, कई सांझा संकलनों में कविता, गज़ल और लधुकथा शामिल युद्धरत आदमी, द कोर , सदानीरा त्रैमासिक, आधुनिक साहित्य, विश्वगाथा, अटूट बंधन, सप्तपर्णी, सुसंभाव्य, किस्सा-कोताह, खुशबु मेरे देश की, अटूट बंधन, नेशनल दुनिया, हिंदुस्तान, निर्झर टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में, बिजुका ब्लॉग, पुरवाई, ओपनबुक्स ऑनलाइन, लधुकथा डॉट कॉम , शब्दव्यंजना आदि में कविताएं प्रकाशित .अहा जिंदगी (साप्ताहिक), आधी आबादी( हिंदी मासिक पत्रिका) में आलेख प्रकाशित .पटना के स्थानीय यू ट्यूब चैनैल TheFullVolume.com के लिए बिहार के गणमान्य साहित्यकारों का साक्षात्कार

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