1
सबसे भागकर जाना चाहती थी वो
कहाँ, ये नहीं मालूम
अब सबसे दूर यहाँ कौन सता रहा है उसे
क्या है जिससे वो भाग नहीं पा रही
पैरों में अब तो कोई बेड़ी भी नहीं
फिर भी हर वक़्त वही उदासी
क्या अब वापिस लौट जाए सबके पास?
2
वो जो हर सुबह उसके गाल चूम लेता है
उसे सबसे अधिक प्रेम करता है
वो भी बात-बात पर कह देता है
“क्या ये हर वक़्त मुँह फुलाये बैठी रहती हो
Why can’t you be just happy यार!”
वो चुपचाप मुस्करा देती है
आख़िर महबूब को भी उदासी की वजह चाहिए।
3
हर समय फोन पर ढूँढती रहती है
10 ways to be happy
म्यूज़िक, आर्ट, किताबें सब कुछ तो करती है
ऊबकर इनसे फिर गूगल खंगालती है
थोड़ी देर बाद डिलीट कर देती है
गूगल की सर्च हिस्ट्री
कोई देख न ले, जाने क्या-क्या सोचती रहती है!
4
“डिप्रेशन बीमारी है
बिल्कुल बुख़ार की तरह”
उसे बिठाकर घंटों समझाया था
ढेरों आर्टिकल दिखाए थे
कैसे तो उसके माथे को चूमकर बोला था—
“I’m always with you.”
अब जब रोने लगती है अचानक
तो लैपटॉप लेकर दूसरे कमरे में चला जाता है
यार तुम्हारा रोज़-रोज़ का यही नाटक है!
5
एक बार किसी का इंतज़ार करते-करते
नींद आयी और वक़्त चुपचाप निकल गया
तबसे वो यही नुस्खा आज़माती है
सो जाने से वक़्त भी निकल जाएगा और ज़िन्दगी भी
घंटों बिस्तर के एक कोने में पड़ी रहती है
जागने के बाद फिर सो जाती है
रात को दो बजे नींद खुलती है
तो घड़ी की तरफ़ देखकर गहरी साँस लेती है
चलो आज का दिन तो निकला।
6
पहले दिल भारी होता है फिर सिर
उसने सिर दर्द की दवाई के पत्ते लाकर रख दिए हैं
ठीक हो जाओ फिर साथ में फ़िल्म देखेंगे
वो कहता है कि व्यस्त रहो तो
ये सब फालतू के ख़याल नहीं आते
उसे मालूम तो होगा न
फ़िल्म देखते हुए भी वो न जाने क्या-क्या सोचती होगी…
7
यार पागल है वो, अपने में ही रहता है
न मिलता है किसी से, न ढंग की नौकरी है
दोस्तों के एक ग्रुप में जाने किसकी बात पर
सबको खिलखिलाते देखा था
तब नहीं कह पायी थी चीख़कर
वो पागल नहीं है और न मैं
चुपचाप मुस्कराकर सब में ख़ुद को शामिल कर लिया था…
8
कैसी घमण्डी चिढ़चिढ़ी है
सबसे उल्टे मुँह बात
पहले कितनी अच्छी हुआ करती थी
उस जैसी समझदार लड़की से
इस तरह की उम्मीद कहाँ की जा सकती थी
वो भी तो ख़ुद को बार-बार यही समझाती है!
9
कितनी बार तो समझा चुकी है उसे कि
वो अभी और चीख़ना चाहती है पूरी ताक़त से
नहीं होना चाहती उसके मना लेने पर चुप
पर उसने कौन-सा डिप्रेशन पर पीएचडी कर रखी है
जो उसकी बातों को समझ सके
“यार आई एम नॉर्मल सबकी तरह
मुझे नहीं समझ आता, तुम क्या कहना चाहती हो!”
कितनी मासूमियत से तो कहता है
ये उसकी प्रॉब्लम थोड़े ही है!
10
एक डिप्रेशन से हुए सूइसाइड केस वाली ख़बर को
उसने ऑफ़िस में ज़ोर-ज़ोर से पढ़ा था
जब सबने एक आवाज़ में
साफ़-साफ़ उसे ग़लत ठहराया था
कि बस मरना नहीं चाहिए था
वो घंटों अकेले में रोयी थी इस बात पर
कौन जाने मन की पीड़ा, ये कँपकँपी
धक्क से बार-बार ज़ेहन में आता मौत का ख़याल
कोई ठीक कर दो ना मुझे…!
एकता नाहर की कविताएँ 'तुम एक अच्छी प्रेमिका बनना'