हवा से तेज़ घोड़े पर सवार
बड़ी खतरनाक मुहिम पर निकला था
बचपन की कहानियों का राजकुमार।
चलने के पहले ही गुरु ने समझाया था
पहले गये हुए लोगों के पथरीले बुतों ने
रास्ते में मिल कर चेताया था
लौट कर न देखना
सीधे चले जाना, याद रहे
मुड़ कर यदि देखा तो
पत्थर हो जाओगे।
रात के अंधेरे में घुल गयी
भीनी-भीनी सुगंध
जाने किन-किन फूलों की
फिर कोई पायल झंकार उठी
खिल-खिल-खिल हंसती
किलकती पुकार उठी। रुका नहीं।
जाने कैसा वह मन था जो
ऐसी पुकार पर टिका नहीं
झुका नहीं, लौट कर देखा नहीं।
बढ़ता गया। अभी उसे याद था
आगे जो गये थे, लौटे नहीं थे।
यही दृश्य देखा था लौट कर
पत्थर हो गये थे।
अंधियारा और भी गहरा हुआ
हर कहीं फैल गया सन्नाटा ठहरा हुआ
फिर वह आवाज़ उठी और दिल
दहल गया, रोती हुई दीन-सी
घुटती हुई सांस, हिचकी दम तोड़ती
चीख डूबती-सी, कि आओ
बचा लो मुझे, रुका नहीं।
जाने कैसा वह मन था
जो ऐसी पुकार पर टिका नहीं
झुका नहीं। बढ़ता गया।
यही एक ढंग है बढ़े चले जाने का –
लौट कर न देखना।
अभी उसे याद था
आगे जो गये थे
अब तक भी लौट नहीं पाये थे
यही दृश्य देखा था लौट कर
पत्थर हो गये थे।
बहुत समझदार था छोटा राजकुमार
खतरनाक मुहिम पर निकल कर
चलने के पहले ही पत्थर था
बढ़ता जा सकता था
संभव था उसके लिये
लौट कर न देखना।