‘Balatkar Ke Baad’, a poem by Ruchi

बलात्कार के बाद मर जाती हैं क्या लड़कियाँ?
नहीं वो तब नहीं मरतीं, वो मरती हैं तब तिल-तिल कर,
जब अम्मा मुँह में कपड़ा ठूँसकर आँसू बहाती है कि ये क्या हो गया?
बड़ी भौजाई और बहनें क्या हुआ कैसे की आशंका जताती हैं,
बाबूजी टहल रहे होते हैं कमरे के बाहर
पर कलेजे के टुकड़े को सीने से लगाने में उनकी भी टाँगें काँप जाती हैं,
बड़ा भाई जानना चाहता है वो अकेले गयी ही क्यूँ थी?
और छोटा- काश मैं दीदी के साथ होता फुटबॉल छोड़।

वो मरती तब हैं जब पड़ोसियों को कहा जाता है
मामा, बुआ के घर गयी है लाडो
और सखियों को दरवाज़े से ही गोलमोल सा कह लौटा दिया जाता है।
भाई बहनों को किसी को कुछ भी पता न चले की योजना में शामिल किया जाता है।

वो मरती तब हैं जब बंद खिड़कियों और दरवाज़ों में मुँह तकिये में दबा रोने को कहा जाता है।
रात के अँधेरों में भाभी की साड़ी शाॅल से ढक तोपताप
अस्पताल को विदा किया जाता है।
भाई डाक्टर के पास पहुँच, पीछे रिक्शे में आ रही माँ और बीबी की राह तकता है
और नर्स के पूछने पर क्या हुआ, भरी ठण्ड में पसीना पोंछता है।

वो मरती तब हैं जब अम्मा कह उठती है बाबूजी को बार-बार
बड़ी का तो हो गया, अब क्या छोटी की भी दुर्गत करवाओगे
कहा था ब्याह दो पर तुम तो अफ़सर बनवाओगे।
और तभी कह उठती है छोटी, मैं जीजी की तरह डरपोक नहीं हूँ,
छू नहीं सकता मुझे कोई, मैं बहुत हिम्मती हूँ।

वो मरती तब हैं जब शादी की रट लगायी अम्मा, लड़के के सामने मुँह बंद रखने को क़सम धराने लगती है
और भौजाई आँख मार फुसफुसा उठती है, जीजी खेली खाई तो पहले से ही हो तब अब काहे डराई हो।

कभी-कभी जी भी जाती हैं वो लड़कियाँ,
जब कोई अनायास कह उठता है कि हम तुम्हारे साथ हैं
हर क़दम हर घड़ी फिर जीने की कोशिश में फिर से जी उठती हैं वो लड़कियाँ।

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