जयशंकर प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ की पैरोडी।

बीती विभावरी जाग री!

छप्पर पर बैठे काँव-काँव
करते हैं कितने काग री!

तू लम्बी ताने सोती है
बिटिया ‘माँ-माँ’ कह रोती है
रो-रोकर गिरा दिए उसने
आँसू अब तक दो गागरी
बीती विभावरी जाग री!

बिजली का भोंपू बोल रहा
धोबी गदहे को खोल रहा
इतना दिन चढ़ आया लेकिन
तूने न जलाई आग री
बीती विभावरी जाग री!

उठ जल्दी से दे जलपान मुझे
दो बीड़े दे-दे पान मुझे
तू अब तक सोयी है आली
जाना है मुझे प्रयाग री
बीती विभावरी जाग री!

बेढब बनारसी
बेढब बनारसी पिछली सदी के एक प्रसिद्ध हिन्दी लेखक थे, जो अपनी मजाकिया लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध थे। वो अपने कल्पित नाम बेढ़ब बनारसी से विनोदी और व्यंग्यपूर्ण हिन्दी कविताएँ लिखते थे। उन्होंने गद्य और कविता की दर्ज़नभर पुस्तकें प्रकाशित किया।