जयशंकर प्रसाद की कविता ‘बीती विभावरी जाग री’ की पैरोडी।
बीती विभावरी जाग री!
छप्पर पर बैठे काँव-काँव
करते हैं कितने काग री!
तू लम्बी ताने सोती है
बिटिया ‘माँ-माँ’ कह रोती है
रो-रोकर गिरा दिए उसने
आँसू अब तक दो गागरी
बीती विभावरी जाग री!
बिजली का भोंपू बोल रहा
धोबी गदहे को खोल रहा
इतना दिन चढ़ आया लेकिन
तूने न जलाई आग री
बीती विभावरी जाग री!
उठ जल्दी से दे जलपान मुझे
दो बीड़े दे-दे पान मुझे
तू अब तक सोयी है आली
जाना है मुझे प्रयाग री
बीती विभावरी जाग री!