कितनी अशक्त है वह भाषा
जो नहीं कर पाती
पक्षियों के कलरव का अनुवाद
जिसके व्याकरण में सज़ायाफ़्ता हैं मछलियाँ
मेहराबों पर तैर नहीं सकतीं
जिसके सीमान्त में रहते हैं काँटे
बेहद, बेहद उदास
किसी छद्म नाम के लिए
तरसता है जिसके भीतर
मधुमास का सूनापन…
…
बारिश के पानी से
आचमन करते कवि के माथे का
दिव्य आलोक है कल्पना
कितना सशक्त है वह कवि
महुए के कूँचे से जो
बुहार देता है सारी उदासियाँ
कितना जीवट
कि मछलियों को भी दे देता है पंख
जिसके तंत्र में
अकुला जाता है
मधुमास फूलते-फलते…
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