प्रियतम!

चल गढ़ें अनगढ़ स्वप्न
दीपशिखा-सा जीवन है यह
कब दिन हो
कब रैन
साथी चल गढ़ें
अनगढ़ स्वप्न…

फूलों को है झरते देखा
पत्तों को है गिरते देखा
जिसने कहा था साथ चलेंगे
उसको पल-पल जाते देखा
यहाँ किसने किया है प्रेम!
साथी…

जिसने पाया वो भी तड़पा
जो ठुकराया वो भी चीखा
वेदना मिश्रित धरा पर
कब किसने पाया चैन!
साथी…

जीवनपथ पर मिलते राही
पर सबको अपनी मंजिल प्यारी
एक-एक कर छोड़ चले सब
किसने निभाया बैन!
साथी
तू दिन बन
मैं रैन
चल गढ़ें
अनगढ़ स्वप्न…

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