चुका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैनें प्रेम
अभी।

जब करूँगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर।

किन्तु मैं हूँ मौन आज
कहाँ सजे मैनें साज
अभी।

सरल से भी गूढ़, गूढ़तर
तत्त्व निकलेंगे
अमित विषमय
जब मथेगा प्रेम सागर
हृदय।
निकटतम सबकी
अपर शौर्यों की
तुम
तब बनोगी एक
गहन मायामय
प्राप्त सुख
तुम बनोगी तब
प्राप्य जय!

शमशेर बहादुर सिंह की कविता 'हमारे दिल सुलगते हैं'

Book by Shamsher Bahadur Singh:

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शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911- 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। तार सप्तक से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।

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