‘Dhoop Kothari Ke Aaine Mein’, a poem by Shamsher Bahadur Singh
धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है,
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
बहुत कोमल नभ,
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई,
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है!
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