‘Dhoop Kothari Ke Aaine Mein’, a poem by Shamsher Bahadur Singh

धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है,
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
बहुत कोमल नभ,
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई,
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है!

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Book by Shamsher Bahadur Singh:

शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911- 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। तार सप्तक से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।