द्रव्य नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
रूप नहीं कुछ मेरे पास
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
सांसारिक व्यवहार न ज्ञान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
शक्ति न यौवन पर अभिमान
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
कुशल कलाविद् हूँ न प्रवीण
फिर भी मैं करता हूँ प्यार
केवल भावुक दीन मलीन
फिर भी मैं करता हूँ प्यार।

मैंने कितने किए उपाय
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
सब विधि था जीवन असहाय
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
सब कुछ साधा, जप, तप, मौन
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
कितना घूमा देश-विदेश
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम
तरह-तरह के बदले वेष
किन्तु न मुझसे छूटा प्रेम।

उसकी बात-बात में छल है
फिर भी है वह अनुपम सुन्दर
माया ही उसका सम्बल है
फिर भी है वह अनुपम सुन्दर
वह वियोग का बादल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुन्दर
छाया जीवन आकुल मेरा
फिर भी है वह अनुपम सुन्दर
केवल कोमल, अस्थिर नभ-सी
फिर भी है वह अनुपम सुन्दर
वह अन्तिम भय-सी, विस्मय-सी
फिर भी है वह अनुपम सुन्दर।

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शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911- 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। तार सप्तक से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।

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