‘टूटी हुई बिखरी हुई’ से
तुमको पाना है, अविराम
सब मिथ्याओं में,
ओ मेरी सत्य!
मुझसे दूर अलग न जाओ।
मुझको छोड़ न दो
कहीं मुझको छोड़ न दो
तुम्हें मेरे प्राणों की सौगन्ध।
जाओ
किन्तु मुझमें बसकर
सुगन्ध की तरह
मेरे साथ
मैं हवा की तरह अदृश्य ही जब हो जाऊँ
जहाँ कहीं जाओ।
तुम मुझको दो
अपना रूप
अपना मद
अपना यौवन
अपनी शक्ति
अपनी माया
अपना प्रेम छल
अपना सत्य—मेरा!
ओ मेरी ही केवल तुम
मेरे साथ रहो
मुझको छोड़ो नहीं
स्वप्न में भी,
तुमको
मेरे प्राणों की शपथ
मलूँगा मैं वक्ष से तुम्हारे
अपने जीवन का समस्त वक्षस्थल
लिपटूँगा मैं अंग-अंग से तुम्हारे
मधुरतम सुवास बन
उच्च से उच्चतर मैं हूँगा तुम्हारे ब्रह्माण्ड में—
तुम्हारे हृदय में—
तुम्हारा ही बनूँगा मैं, केवल तुम्हारा।
हूँ मैं तुम्हारा उपेक्षित भाव
सुधर-सा रहा हूँ पर धीरे-धीरे
अंगीकृत होने।
ओ मेरी सुख,
मेरी समस्त कल्पना के पीछे एक सत्य
मुझ उपेक्षित को स्नेह स्वीकृत करो
मेरे जीवन की सुख
सरल सहवास का सौन्दर्य
मधुर ऐक्य सुख।
शमशेर बहादुर सिंह की कविता 'हमारे दिल सुलगते हैं'