‘The Handsomest Drowned Man in the World’, a story by Gabriel García Márquez
अनुवाद: सरिता शर्मा
बच्चों ने सबसे पहले समुद्र से तेज़ी से आते काले उभार को देखा, तो उन्होंने उसे दुश्मन का जहाज़ समझा। जब उन्होंने उस पर किसी झण्डे या मस्तूल को नहीं देखा तो सोचा कि कोई व्हेल होगी। मगर जब वह समुद्र तट पर बहकर आया, उन्होंने उसके शरीर पर से समुद्री शैवाल के गुच्छे, जेलीफ़िश जाल के स्पर्षकों और मछली के अवशेष तथा कचड़े को हटाया तो उन्हें पता चला कि वह एक डूबा हुआ आदमी था।
वे पूरी दोपहर उसे रेत में दफ़नाकर और फिर खोदकर निकालकर उसके साथ पूरी-पूरी दोपहर खेलते रहे थे तो किसी की नज़र उन पर पड़ी और गाँव में हल्ला मचा दिया। जब उसे सबसे पास वाले घर ले गए तो पाया कि उनकी जानकारी में उसका वज़न किसी भी मरे हुए आदमी की तुलना में अधिक था, बल्कि घोड़े जितना होगा और उन्होंने एक-दूसरे से कहा कि शायद वह लम्बे समय से बह रहा था और उसकी हड्डियों में पानी भर गया था। उन्होंने उसे फ़र्श पर रखा तो उन्होंने कहा कि वह अन्य सभी पुरुषों से लम्बा था क्योंकि घर में उसके लिए जगह नहीं थी, तो उन्होंने सोचा कि कुछ डूबे हुए लोगों में मौत के बाद भी बढ़ने की क्षमता थी। उसमें से समुद्र की गंध आ रही थी और केवल उसके आकार से लगता था कि यह एक इंसान की लाश थी क्योंकि उसकी त्वचा कीचड़ की पपड़ी और धारियों से ढकी हुई थी।
उन्हें यह पता करने के लिए उसके चेहरे को साफ़ करने की ज़रूरत नहीं थी कि मृत आदमी अजनबी था। गाँव में लकड़ी के बने बीस मकान थे जिनके पत्थर के आँगनों में फूल नहीं थे और फूल रेगिस्तान जैसी गरदनी के छोर पर बिखरे हुए थे। इतनी कम ज़मीन थी कि माँओं को हमेशा डर रहता था कि हवा उनके बच्चों को बहा ले जाएगी और उनमें से कई सालों से मरे हुए कुछ बच्चों को चट्टानों से धकेलना पड़ेगा। लेकिन समुद्र शांत और उदार था और सभी पुरुष सात नौकाओं में समा गए थे। उन्हें डूबा हुआ आदमी मिला तो उन्होंने बस यह जानने के लिए एक दूसरे को देखा कि वे सब वहाँ मौजूद थे।
उस रात वे काम करने के लिए समुद्र में नहीं गए। जबकि पुरुष यह पता लगाने के लिए पड़ोस के गाँवों में चले गए कि कोई आदमी खोया हुआ तो नहीं है, महिलाएँ डूबे हुए आदमी की देखभाल करने के लिए पीछे रुक गईं। उन्होंने घास की बनी झाड़ू से उसकी कीचड़ हटायी, उसके बालों में उलझे हुए पानी के नीचे के पत्थरों को निकाल दिया, मछली की शल्क उतारने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों से पपड़ी को हटा दिया। जब वे ऐसा कर रही थीं तो उन्होंने पाया कि उस पर जमी घासफूस दूर महासागरों और गहरे पानी से आयी हुई है और वह मूँगे के भँवरजालों से बहकर आया था। उन्होंने देखा कि उसने अपनी मृत्यु को गर्व के साथ सहन किया था और वह समुद्र से आने वाले अन्य पुरुषों की तरह अकेला नज़र नहीं आ रहा था, न ही वह नदियों में डूबने वाले लोगों की तरह ज़रूरतमंद और मरियल लग रहा था। लेकिन उन्हें सफ़ाई करने के बाद पता चला कि वह किस तरह का आदमी था और वे अवाक रह गए। उन्होंने उस जितना लम्बा, शक्तिशाली, साहसी, और सुन्दर आदमी कभी नहीं देखा था, हालाँकि वे उसे देख रहे थे, वे उसके बारे में कल्पना नहीं कर पा रहे थे।
उन्हें उसे लिटाने के लिए गाँव में इतना बड़ा कोई बिस्तर नहीं मिला और न ही उसकी लाश की देखरेख के लिए कोई मज़बूत मेज़ मिली। सबसे मोटे आदमी की ढीली पैंट उसे फिट नहीं आयी और न ही सबसे बड़े पैरों वाले आदमी के जूते उसे पहनाए जा सके। उसके भारी-भरकम डीलडौल और सुन्दरता से मोहित होकर महिलाओं ने उसके लिए पाल के बड़े टुकड़े से पैंट और दुल्हन के ब्रेबेंट लिनन से शर्ट बनाने का फ़ैसला किया जिससे उसका मृत्यु के बाद का सफ़र गरिमामय हो सके।
जब वे गोल चक्कर में बैठकर सिलाई करते हुए लाश को निहार रही थीं, उन्हें लग रहा था कि हवा उस रात जितनी स्थिर कभी नहीं थी और न ही समुद्र को कभी इतना बेचैन पाया था और उन्होंने सोचा कि उन बदलावों का मृत आदमी के साथ ज़रूर कोई रिश्ता है। उन्होंने सोचा कि अगर वह शानदार आदमी गाँव में रह रहा होता, तो उसके घर के दरवाज़े सबसे चौड़े, छत सबसे ऊँची, फ़र्श सबसे मज़बूत होता, उसकी चारपाई लोहे के पेंचों से चौखटे में बँधी होती और उसकी पत्नी सबसे ख़ुश औरत होती। उन्होंने सोचा कि उसके पास इतनी ताक़त होती कि वह मछलियों को सिर्फ़ उनके नाम पुकारकर समुद्र से बाहर निकाल सकता था और वह अपनी ज़मीन में इतना काम करता होता कि चट्टानों के बीच से झरने फूट पड़े होते जिनसे वह चट्टानों पर फूलों के पौधे लगाने में सक्षम हो गया होता।
उन्होंने चुपके-से उसकी तुलना अपने आदमियों से की तो सोचा उनके आदमी अपने पूरे जीवन में वह करने के क़ाबिल नहीं थे जिसे वह एक रात में कर सकता था और उन्हें अपने दिल में पृथ्वी पर सबसे कमज़ोर, मतलबी और सबसे बेकार प्राणियों के रूप में नकार दिया। जब वे कल्पना की भूलभुलैया में खोयी हुई थीं तो सबसे बुज़ुर्ग औरत ने डूबे हुए आदमी को जुनून की बजाय करुणा से देखा था और आह भरी, “उसका चेहरा एस्तेबान से मिलता जुलता है।”
यह सच था। उनमें से अधिकांश ने यह जानने के लिए फिर से देखा कि उसका नाम कोई और नहीं, हो ही नहीं सकता था। जब उन्होंने उसे कपड़े और पेटेंट वाले चमड़े के जूते पहनाकर फूलों के बीच रखा, उनमें से ज़्यादा ज़िद्दी और सबसे कम उम्रवाली औरत कुछ घण्टों तक इस भ्रम में रही कि उसका नाम लौतारो हो सकता है। लेकिन यह भ्रम व्यर्थ था। कैनवास पूरा नहीं पड़ा, ख़राब कटाई और बदतर सिली गई पैंट भी उसे तंग थी और उसके हृदय की छिपी ताक़त ने उसकी शर्ट के बटनों को तोड़ दिया।
आधी रात के बाद हवा की सीटी बन्द हो गई और समुद्र अपने बुधवार के उनींदेपन में डूब गया था। चुप्पी ने किसी भी प्रकार के सन्देह को ख़त्म कर दिया : वह एस्तेबान था। जिन महिलाओं ने उसे कपड़े पहनाए थे, उसके बालों को कंघी की थी, उसके नाख़ून काटे थे और उसके बाल उतारे थे, वे उस समय दयापूर्ण कँपकँपी को नहीं रोक पायीं जब उसे ज़मीन पर घसीटा जा रहा था। तब उन्हें यह समझ आया कि वह उस विशाल शरीर से कितना दुःखी रहा होगा जिसने उसे मौत के बाद भी परेशान किया हुआ था।
उन्होंने उसके जीवन की कल्पना की, उसे दरवाज़े के बग़ल की चौखट से सिर टकराते देखा, किसी के यहाँ जाने पर पाँवों पर खड़े देखा क्योंकि उसे समझ नहीं आता था कि अपने मुलायम, गुलाबी, समुद्र शेर जैसे हाथों से क्या करना चाहिए जबकि घर की महिला अपनी सबसे मज़बूत कुर्सी को तलाश करके बहुत डरी हुई उससे विनती करती थी- “एस्तेबान कृपया यहाँ बैठ जाओ” और वह दीवार के साथ झुककर मुस्कुराते हुए कहता था, “मैडम परेशान मत होइए, मैं जहाँ हूँ ठीक हूँ”।
और वह जहाँ भी जाता था एक ही काम करने से उसकी ऐड़ी थक जाती और पीठ भुन जाती थी, बस कुर्सी तोड़ने की शर्मिंदगी से बचने के लिए वह कहा करता था, “मैडम परेशान मत होइए, मैं जहाँ हूँ ठीक हूँ”, और वह शायद कभी नहीं जान पाया कि जो कहती थीं, एस्तेबान कम से कम कॉफ़ी के तैयार होने तक रुक जाओ, वही बाद में कानाफूसी करती होंगी कि कितना अच्छा हुआ अन्ततः महाउल्लू सुन्दर मूर्ख चला गया है।
सुबह होने से थोड़ी देर पहले तक औरतें लाश की बग़ल में बैठी यही सोच रही थीं। उन्होंने बाद में जब उसके चेहरे को रूमाल से ढका ताकि प्रकाश उसे परेशान नहीं करे तो वह हमेशा के लिए मृत और इतना असहाय और उनके आदमियों से बहुत मिलता-जुलता दिखायी दिया जिससे उनके दिल में रुलाई फूट पड़ी। सबसे कम उम्र की औरत ने रोना शुरू किया। औरों ने आने के बाद आहें भरी, फिर रोना शुरू कर दिया, वे जितना सिसक रहे थे और ज़्यादा रोते जा रहे थे क्योंकि डूबा हुआ आदमी उनके लिए और अधिक एस्तेबान होता जा रहा था, इसलिए उन्हें और भी रोना आ रहा था क्योंकि वह धरती पर सबसे ज़्यादा बेसहारा, सबसे ज़्यादा शांत, सबसे शिष्टाचारी आदमी एस्तेबान था। जब पुरुष पड़ोसी गाँवों से इस ख़बर के साथ लौटे कि डूबा हुआ आदमी पड़ोसी गाँवों का नहीं था तो, जब महिलाएँ अपने आँसू के बावजूद उत्साह महसूस करने लगीं।
उन्होंने आह भरी “हे भगवान, वह हमारा है!”
पुरुष हाय तौबा मचाने को औरतों की नौटंकी मान रहे थे। वे रात भर की पूछताछ से थके हुए थे, वे बस यह चाहते थे कि इससे पहले कि सूरज उस शुष्क, बिना हवा वाले दिन में और गर्म हो जाए, नवागंतुक की मुसीबत से हमेशा के लिए छुटकारा पा लिया जाए। उन्होंने मस्तूल और भालों के अवशेष से कूड़े को कामचलाऊ ढंग से रस्सियों से बांध दिया जिससे वे चट्टानों पर पहुँचे तब तक वह लाश का भार सम्भाल सके। वे उसे एक मालवाहक जहाज़ के लंगर के साथ बांधना चाहते थे जिससे वह गहरी धाराओं में आसानी से डूब सके जहाँ मछलियाँ अंधी हो जाती हैं और गोताखोर पुरानी यादों से मर जाते हैं, और ख़राब धाराएँ उन्हें किनारे पर वापस नहीं लाती थीं जैसा कि अन्य लाशों के साथ हुआ था। मगर वे जितनी जल्दी मचा रहे थे, महिलाएँ समय बर्बाद करने के उतने ही ज़्यादा तरीक़ों के बारे में सोच रही थीं। वे चौंकी हुई मुर्ग़ियों की तरह अपने गले में पड़े समुद्री ताबीज के साथ छेड़छाड़ करती हुई टहल रही थीं।
जहाँ कुछ औरतें डूबे हुए आदमी पर अच्छी हवा की स्कंधास्थि रखने में लगी थीं, दूसरी तरफ़ कुछ उसकी कलाई पर एक कम्पास बांधने के लिए हस्तक्षेप कर रही थीं, और आदमियों ने बहुत शोर मचाया, औरतो वहाँ से एक तरफ़ हट जाओ, देखो तुमने तो मुझे मरे हुए आदमी के ऊपर गिरा ही दिया था, और फिर वे अपने जिगर में अविश्वास महसूस करने लगे और इस बात पर बड़बड़ाना शुरू कर दिया कि एक अजनबी की मुख्य वेदी के लिए इतनी सजावट क्यों की जाए क्योंकि कितने भी नाख़ून और पवित्र पानी के जार क्यों न रख दिए जाएँ, शार्क उन सब को चबा ही लेंगी। लेकिन महिलाओं ने आगे पीछे भागते हुए, ठोकरें खाते हुए अपने कबाड़ अवशेष का ढेर लगाना जारी रखा, जबकि उन्होंने अपनी आहों में उस भावना को प्रकट किया जिसे वे आँसुओं में व्यक्त नहीं कर पायी थीं, पुरुषों के सब्र का बाँध टूट गया और उन्होंने कहा कि एक बहती लाश, डूबे हुए अजनबी, बुधवार के ठण्डे माँस पर इतना उपद्रव कब से किया जाने लगा। देखभाल की इतनी कमी से अपमानित एक औरत ने मरे हुए आदमी के चेहरे से रूमाल हटाया तो पुरुष भी हक्के-बक्के रह गए।
वह एस्तेबान था। उन्हें उसे पहचानने के लिए इस बात को दोहराने की आवश्यकता नहीं थी। अगर उन्हें उसका नाम सर वाल्टर रैले बताया गया होता, यहाँ तक कि वे उसके विदेशी लहजे, उसके कंधे पर बैठे तोते, नरभक्षक की हत्या करने वाले उसके हथियार से प्रभावित हो जाते, लेकिन दुनिया में केवल एक ही एस्तेबान हो सकता था और वह वहाँ नंगे पाँव, अपने से कम उम्र के बच्चे की पैंट पहने हुए, चाकू से काटे जाने वाले पथरीले नाख़ून के साथ शुक्राणु व्हेल की तरह पसरा पड़ा था। उन्हें यह देखने के लिए उसके चेहरे से बस रूमाल हटाना था कि उसे शर्म आ रही थी कि यह उसकी ग़लती नहीं थी कि वह इतना लम्बा-चौड़ा, भारी या सुन्दर था और अगर वह यह जानता कि ऐसा होगा, तो उसने डूबने के लिए बेहतर जगह चुनी होती, सच में मैंने युद्धपोत के लंगर को भी अपनी गर्दन से बांधकर किसी तरह पहाड़ पर पहुँचकर ऐसे आदमी की तरह ख़ुद को गिरा दिया होता जो किसी को भी बुधवार को मिली लाश से परेशान करना पसंद नहीं करता जैसा कि लोग कहते हैं ठण्डे माँस के इस गंदे लोथड़े से अब उसका कोई सम्बन्ध नहीं था।
उसके चेहरे पर इतनी सच्चाई थी यहाँ तक कि सबसे शक्की पुरुष जिन्होंने समुद्र में बितायी अंतहीन रातों की कड़वाहट को महसूस किया था और डरने लगे थे कि उनकी औरतें उनके बारे में सपने देखने से थककर कहीं डूबे हुए आदमी का सपना देखना शुरू न कर दें और जो ज़्यादा मज़बूत दिल वाले थे, उन्हें भी एस्तेबान की ईमानदारी से हड्डियों में झनझनाहट महसूस होने लगी।
तो इस तरह उन्होंने परित्यक्त डूबे हुए आदमी का उनकी कल्पना में सबसे शानदार अन्तिम संस्कार किया। कुछ महिलाएँ जो पड़ोस के गाँवों में फूल लाने के लिए चली गई थीं, वे अन्य महिलाओं के साथ लौट आयीं, उन्हें जो बताया गया उन्हें उस पर यक़ीन नहीं हुआ और जो औरतें और अधिक फूल लेने के लिए लौट गई थीं, जब उन्होंने मरे हुए आदमी को देखा तो वे और ज़्यादा फूल लाती गईं और इतने सारे फूल और आदमी हो गए कि चल पाना मुश्किल हो गया।
अन्तिम क्षण में उन्हें उसे एक अनाथ के रूप में पानी में लौटाते हुए दुःख हो रहा था और उन्होंने सबसे अच्छे लोगों में से एक पिता और माँ, और चाची और चाचा और चचेरे भाई को चुना, यहाँ तक कि उसके माध्यम से गाँव के सभी निवासी रिश्तों के सूत्र में बँध गए। जिन कुछ नाविकों ने दूर से रोने की आवाज़ सुनी, वे रास्ता भटक गए और लोगों ने एक ऐसे नाविक के बारे में सुना जिसने प्राचीन दंतकथाओं में जलपरियों को याद करके ख़ुद को जहाज़ के बड़े मस्तूल से बँधवा लिया था।
जब वे चट्टानों से लगी ढलान पर उसे अपने कंधों पर ले जाने के लिए लड़ रहे थे, और जब वे डूबे हुए आदमी की भव्यता और सुन्दरता से रूबरू हुए, तो पुरुषों और महिलाओं ने पहली बार अपनी गलियों की तबाही, आँगनों के सूखेपन और सपनों की संकीर्णता का सामना किया। उसे लंगर के बिना जाने दिया जिससे अगर वह वापिस आना चाहता, जब भी आना चाहता, वापस आ सकता था। और जब लाश खाई में समा गई तो कुछ पल के लिए उनकी साँस थम गई। उन्हें यह जानने के लिए एक-दूसरे को देखने की ज़रूरत नहीं थी कि वे सब अब सभी मौजूद नहीं थे और वे कभी भी मौजूद नहीं होंगे। लेकिन वे यह भी जानते थे कि उसके बाद सब कुछ बदल जाएगा, कि उनके घरों के दरवाज़े और चौड़े, छतें और ऊँची और फ़र्श मज़बूत होगा ताकि एस्तेबान की स्मृति कड़ियों से टकराए बिना कहीं भी जा सके और भविष्य में कोई भी यह कानाफूसी करने की हिम्मत नहीं करेगा कि बहुत बुरा हुआ महाउल्लू और ख़ूबसूरत बुद्धू अन्ततः मर गया, क्योंकि वे एस्तेबान की स्मृति को अनन्त बनाने के लिए अपने घर के दरवाज़ों को ख़ुशनुमा रंग देंगे और वे कमरतोड़ मेहनत करके झरने के लिए पत्थरों के बीच खुदाई करेंगे और चट्टानों पर फूल खिलाएँगे ताकि आने वाले वर्षों में बड़े जहाज़ पर सवार वनस्पति की दमघोंटू गंध से त्रस्त यात्री जब भोर में जागेंगे, और कप्तान अपनी वर्दी पहने, अपने यंत्र, ध्रुव तारे और अनेक युद्ध पदकों के साथ पुल से नीचे आएगा, और क्षितिज पर गुलाब के उच्च अंतरीप की ओर इशारा करते हुए चौदह भाषाओं में कहेगा वहाँ देखो, जहाँ हवा अब इतनी शांत है कि वह क्यारी के नीचे सोने के लिए चली गई है, वहाँ देखो जहाँ सूरज इतना उज्ज्वल है कि सूरजमुखी को पता नहीं है कि किस ओर मुड़ा जाए हाँ, वहाँ पर, वही एस्तेबान का गाँव है।
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