1

इस सियह रात में कोई तो सहारा मिल जाए
अपने अंदर ही कोई साया चमकता मिल जाए

उसको इक दुःख से बचाना भी ज़ुरूरी है बहुत
बस किसी तर्ह वो इक बार दुबारा मिल जाए

सोचता हूँ कि अब इस घर में मिरा है ही क्या
हाँ अगर रोने की ख़ातिर कोई कोना मिल जाए

शह्र का शह्र ही वीरान पड़ा है कैसा
कोई बच्चा ही कहीं शोर मचाता मिल जाए

जानते हैं कि वहाँ लौटके भी क्या होगा
एक कोशिश कोई जीने का बहाना मिल जाए

2

हर इक शजर पे परिंदे सिमट के बैठे हैं
हवा ए सर्द के झोंके बहुत नुकीले हैं

कहाँ संभलता है जल्दी किसी की मौत से दिल
हाँ ठीकठाक हैं पहले से थोड़े अच्छे हैं

धुआं धुआं सी है फेहरिस्ते रफ़्तगाँ लेकिन
दो एक चेहरे हैं वैसे ही जगमगाते हैं

तुझे ख़बर भी है ऐ दोस्त तेरे मरहम से
कुछ एक ज़ख़्म जो अंदर नए से बनते हैं

क़दम क़दम पे नए मोड़ मुड़ने वाले लोग
न जाने क्यों मुझे अब ठीक जान पड़ते हैं

जुदा हुए तो बहुत दिन गुज़र गए लेकिन
हवा-ए-ताज़ा के झोंकों से अब भी डरते हैं

कभी तो ख़ूब सिसकते हैं बेतरह और फिर
ख़याल ए मर्ग से यकदम चहकने लगते हैं

3

नहीं इस चुप के पीछे कुछ नहीं ऐसा
बस इक शुब्हा सा है तुमसे भी वाबस्ता

उसे तो ख़ैर इतना भी नहीं अब याद
कि पहला जाल उसने किस पे फेंका था

अजब सुख था किसी का दुःख बंटाने में
मैं अपनी मौत भी ज़ाहिर न करता था

हम ऐसों की जगह बनती ही कितनी है
हम ऐसों का ठहरना क्या बिछड़ना क्या

मुझे दरकार है फिर भीगी सी आँखें
वगरना अगली रुत में सूख जाऊँगा

यही इक दुःख तो सीने में सभी के है
कोई सचमुच में अपने साथ था भी या…

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