भीष्म साहनी के उद्धरण | Quotes by Bhisham Sahni
“ईमानदार आदमी क्यों इतना ढीला-ढाला होता है, क्यों सकुचाता-झेंपता रहता है, यह बात कभी भी मेरी समझ में नहीं आयी। शायद इसलिए कि यह दुनिया पैसे की है। जेब में पैसा हो तो आत्म-सम्मान की भावना भी आ जाती है, पर अगर जूते सस्ते हों और पाजामा घर का धुला हो तो दामन में ईमानदारी भरी रहने पर भी आदमी झेंपता-सकुचाता ही रहता है।”
“स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में कुछ भी तो स्पष्ट नहीं होता, कुछ भी तो तर्क-संगत नहीं होता। भावनाओं के संसार के अपने नियम हैं, या शायद कोई भी नियम नहीं।”
“हिन्दुस्तानी पहले तो अपने देश से भागता है और बाद से उसी हिन्दुस्तान के लिए तरसने लगता है।”
“दिल्ली में प्रत्येक मोटर चलानेवाला आदमी साइकिल चलानेवालों से नफ़रत करता है। दिल्ली के हर आदमी के मस्तिष्क में घृणा पलती रहती है और एक-न-एक दिन किसी-न-किसी रूप में फट पड़ती है। दिल्ली की सड़कों पर सारे वक़्त घृणा का व्यापार चलता रहता है।”
“पिछले ज़माने की घृणा कितनी सरल हुआ करती थी, लगभग प्यार जैसी सरल। क्योंकि वह घृणा किसी व्यक्ति विशेष के प्रति हुआ करती थी। पर अनजान लोगों के प्रति यह अमूर्त घृणा, मस्तिष्क से जो निकल-निकलकर सारा वक़्त वातावरण में अपना ज़हर घोलती रहती है।”
“दुनिया बड़ी विचित्र पर साथ ही अबोध और अगम्य लगती, जान पड़ता जैसे मेरी ही तरह वह भी बिना किसी धुरे के निरुद्देश्य घूम रही है।”
“एक उसूल ज़मीर का होता है तो दूसरा फ़ाइल का।”
“ठेकेदार हर मज़दूर के भाग्य का देवता होता है। जो उसकी दया बनी रहे तो मज़दूर के सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं, पर जो देवता के तेवर बदल जाएँ तो अनहोनी भी होके रहती है।”
“हुकूमत करनेवाले यह नहीं देखते कि प्रजा में कौन सी समानता पायी जाती है, उनकी दिलचस्पी तो यह देखने में होती है कि वे किन-किन बातों में एक दूसरे से अलग हैं।”
“जब वो औरों के लिए आए तो मैंने कहा कि मैनू की। जब वे उनके लिए आए तो फिर मैंने कहा कि मैनू की। जब वो मेरे लिए आए तो सबने कहा कि मैनू की।”
“फिसाद कराने वाला भी अंग्रेज, फिसाद रोकने वाला भी अंग्रेज।”
“मनुष्य का मन अपने अन्दर से ही त्राण पाता है और अपने अन्दर से ही असह्य क्लेश भी।”
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