‘Insaniyat Ka Libaas’, a poem by Mamta Pandit

तानो बन्दूक़ें एक-दूसरे पर
और आधिपत्य की इस लड़ाई में
ख़त्म कर लो अपना अस्तित्व
अपना कोई अंकुर न रहने देना
कि तुम्हारी नस्ल का बोझ
ढोया नहीं जाता अब इस धरा से

तुम्हारी बस्ती से तो बेहतर है
जंगल की कहानी
कि जहाँ शेर-हिरण, भालू-भेड़िया
सब पीते हैं, एक घाट का पानी
सबका पेट भरता है
वहाँ हिरण, हिरण को नहीं मारता
जीवन आराम से चलता है।

तुम एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे
क्या ज़रूरत तुम्हें भाषा, विचार या किताबों की
उतार फेंको इंसानियत का ये झूठा लिबास
मौक़ापरस्त-सी सम्वेदनाएँ, झूठे एहसास

जाओ जंगलो में, रहो उन जानवरों के साथ
फिर सुनो, तुम्हारी बस्ती से बेहतर हैं
जंगल के हालात, इसलिए
मुझे यक़ीन है तुम्हें वहाँ से भी खदेड़ा जाएगा
बेमानी-सी इस लड़ाई में
तुम्हारा अस्तित्व मिट जाएगा
तुम्हारा अस्तित मिट जाएगा।

Previous articleभली-सी एक शक्ल थी
Next articleरिया गुप्ता की कविताएँ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here