‘Janmdin’, a poem by Mukesh Kumar Sinha

जब सैंतालीस,
धप्पा करते हुए बोले अड़तालीस को
जी ले तू भी उम्मीदों भरा साल
है भविष्य के गर्त में कुछ फूल
जो बींधेंगे उंगलियों को
क्योंकि हैं ढेरों काटें भरे तने
तब तुम सब हैप्पी बड्डे कहना।

जब सैंतालीस
करे याद छियालीस की झप्पी को
जो सर्द निगाहों से ताक कर
नम हो चुकी आवाज़ में
पिछले बरस थी, बोली
स्नेह पापा का भी समेटो
बरस भर ही तो हुआ
जब गए थे पप्पा इसी दिन
बेशक मम्मी के फ़ोन पर झिझककर
थैंक यू कह लेना
पर तुम सब मुझे हैप्पी बड्डे कहना

जब सैंतालीस
के सपने में
पैंतालीस ने सिसकते हुए
पापा की जलती चिता की गर्मी को महसूसा
जिसने नम आँखों से था देखा
ऊष्मा में आशीर्वाद
समय बीत गया अब तो
सुनो तुम सब हैप्पी बड्डे ज़रूर कहना।

जब सैंतालीस
आने वाले उनचास और
फिर खिलखिलाते पचास को
आसमां के सितारों में ढूंढे
और जाते जाते कह दे मुस्कुराकर
बेशक मर जाना, पर मुक्कू तुम न बदलना
तुम, तुम्हारा बचपना
तुम्हारी सुनहरी छवियां जो अब बता रहीं उम्र
फिर भी ख़ुश ही रहना
इसलिए मैं ख़ुद कह रहा हूँ
तुम सब, सब सब
हैप्पी बड्डे ज़रूर कहना।

कहोगे न।

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