‘Jo Bacha Sako’, a poem by Atul Chaturvedi

जो कुछ बचा है
लेखकों के लिए बचे हैं सिर्फ़ विचार
बच्चों के पास मासूमियत
स्त्रियों पर धैर्य
युवाओं के लिए बचे-खुचे सपने
कामगार उम्मीद पाले हैं
किसानों पर अकूत हौसला बचा है
रिश्तों में क्दीमो लिहाज़
आँखों में रोशनी
कानों में माद्दा बचा है घोर निंदा सुनने का
जब तक बचा है इतना कुछ
बदल सकती है दुनिया
मिट सकता है अंधेरा
फूट सकती है एक कोपल
घोर तुषारापात के मौसम में भी…

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