पुराने अख़बार से
टोपियाँ बनायीं आज मैंने
अमलताश की शाख से
टूटी पत्ती से पूछा मैंने
ज़मीन से क्या कहना है?
अलगनी से पूछा
मेरी कमीज़ की खूशबू
पहचानती हो?
और पूछा रोशनदान में डेरा डाले
कबूतर के जोड़े से
यूँ मलंग रहने का
हौसला कहाँ से लाते हो?

ख़ाली वक़्त कितना कुछ सिखा देता है!

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रजनीश गुरू
किस्से कहानियां और कविताएं पढ़ते-पढ़ते .. कई बार हम अनंत यात्राओं पर निकल जाते हैं .. लिखावट की तमाम अशुद्धियों के साथ मेरी कोशिश है कि दो कदम आपके साथ चल सकूं !!

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