‘Khanabadosh Striyaan’, a poem by Mukul Amlas
हर स्त्री बेघर होती है
उसका कोई घर नहीं होता
निकाल दी जाती हैं घर से
कभी कन्यादान के नाम पर
कभी दुराचारिता के नाम पर
जीवन बीतता है
अग्नि परीक्षा देते
शेष कटता अरण्य में
पर वो जहाँ भी जाती है
क्षण भर में घर-सा कुछ बसा देती है
लदा होता उसका घर
सदैव उसके काँधे पर
मिला हुआ है उसे वरदान अन्नपूर्णा का
पादपों की नाईं तैयार करती भोजन शरीर में
एक शिशु ही तृप्त नहीं होता
स्नेह से सबका पेट भर देती
भिक्षुक कभी भूखा नहीं जाता
न कोई पक्षी, न पशु
यह बात अलग है कि
शापित है वह
अपना भोजन ख़ुद ग्रहण करने के लिए
अक्सरहां सिर्फ़ पानी पीकर
भूखे ही सोना होता उसे।