‘Kya Kya Main Kidhar Rakh Loon’, a poem by Swati Kelkar

सीने की अतरदानी में
जंगल की महक रख लूँ
गीली सी हवा रख लूँ
अलसाई किरन रख लूँ
झरनों के गीतों को
झुमकों की तरह पहनूँ
कानों में झीलों की
अल्हड़ सी खनक रख लूँ
पलकों में छुपा लूँ मैं
इस धुंध की तस्वीरें
कोहरे की ज़ुल्फ़ों को
सुलझाती किरन रख लूँ।
फिर लौट के खोना है
उसी शहर में लोगों के
फिर भीड़ में जीने की
कोई तो वजह रख लूँ।

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