कक्षा की लास्ट बैंच पर बैठने वाले
जिनके खीसों की मुठ्ठियों में भरी रहती हैं दुगनी आज़ादी

जो गले में बाँधे घूमते हैं
नालायक़ और डफ़र की तख़्ती

अक्सर वे गुम हुई तितलियों को ढूँढते हुए
ज्ञान की लालटेन में सेंध लगाना भी जानते हैं

यही तुम्हारी बनायी सीधी लकीर की बाँह मरोड़कर
चल पड़ते हैं
अपनी बनायी टेड़ी लाईन के सख़्त पंजों पर
क्योंकि वे केवल साँस लेने वाली भेड़ नहीं होना चाहते

यक़ीन करो
तुम्हारे फ़िक्स नियमों को डस्टर से मिटाने के बाद
और सारी होशियारी को ताला जड़ने के उपरान्त
इन्होंने ही की थी आग की खोज

जब तुम पढ़ा रहे थे भेड़ों को कोई बौद्धिक पाठ
तो ये चुपचाप तुम्हारे
‘यहाँ अक़्ल बँटती है’ वाले बैनर पर
काली स्याही पोतकर
चल पड़े थे पहिए का आविष्कार करने

एक सभ्य लाईन में खड़े होकर
जब तुम कर रहे थे पेड़ों को नंगा, वस्त्र की चाह में
सु-नागरिक शास्त्र के पर्चे बाँटते हुए
तब यही लास्ट बैंच वाले तुम्हारे ख़िलाफ़ जाकर
कपास के बीज बो रहे थे

तमीज़दार होने की बहस दरअसल अपने भीतर के जानवर को छिपाने की ज्ञानी कला है

इसी कला के बाहर कुछ लास्ट बैंचधारी
ख़ुद से खींची लाईन पर चलते-चलते
जुगनुओं के घर जा बैठे

और जंगलों के साथ करने लगे कविताई

यक़ीन करो
ये ही इतिहास के पहले कवि थे।

Previous articleतुम स्त्री हो
Next articleप्रेम का रोग

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here