‘Main Phaad Dena Chahta Hoon’, a poem by Hemant Gautam

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जिन पर मैं अमल नहीं कर पाता
जिनकी आत्मा केवल बसी हुई है
काग़ज़ पर!!
जो क़ैद हैं शब्दों के जाल में,
जिनकी कोई उम्र ही नहीं
बस वो लिखी गई थीं
पल भर की अनुभूति के अनुसार!!

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जिनके शब्द नृत्य करते हैं कल्पना में
वास्तविकता के स्थान पर!!!
जो कविकल्पित हैं और उकेरी गयीं थीं
अनुभूति का स्वाद चखे बिना!!

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जो खींची गयी थीं मेरे अंदर से अथक प्रयास के पश्चात
और सज्जित कर दी गई थीं बेढंग तरीक़े से
मेरी डायरी के उस पन्ने पर जो सूना पड़ा था
कई दिनों से…

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जो विराजमान है अट्टलाकिओं पर
और हँसती है बस्तियों की सजावट,
उनकी साधारणता
और छिपी हुई गुणवत्ता पर
जिसका उन्हें क़तई भी आभास नहीं..

मैं फाड़ देना चाहता हूँ उन कविताओं को
जो लिखी थी उस आकर्षण केंद्र पर
जिसे मैं अक्सर प्रेम कहता हूँ!
जिसकी कविताएँ फूटी थी अनायास
किन्तु महफ़िलों में मैंने बेचा है उनको
प्रेम के नाम पर!!

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