‘Main Seenchti Rahi Tumhare Boe Cactus’, a poem by Chandra Phulaar
मेरे बाग़ीचे में
तुमने कुछ कैक्टस बो दिए थे
पसंद नहीं थे वो मुझे
पर वो तुमसे जुड़े थे
इसीलिए मैं चुपचाप
फूलों के साथ उन्हें भी
सींचती रही!
वो सोखते रहे
मेरे गुलाबों की ख़ूबसूरती
मोगरे की ख़ुशबू
सूरजमुखी के रंग
मधुमालती की चहक…
पर मैं उखाड़ ना पायी उन्हें
सींचती रही!
कई बार पूछना चाहा
क्यूँ बोये काँटें?
क्यूँ उगाया दुःख?
पर
मैंने तुमसे कहाँ
कभी कोई सवाल किए!
जो भी मिला तुमसे
स्याह… सफ़ेद…
उसे बस…
सींचती रही!
मैंने उन नागफनियों को
रोज़ बढ़ते देखा
और देखा अपने मासूम फूलों को
झड़ते
अपनी ख़ुशियों को
उजड़ते
पर कुछ कह न सकी किसी से
बस…
सींचती रही!
अब सोचती हूँ
आख़िर किससे करूँ सवाल
किसे दूँ दोष
एक अरसा हुआ
मैं ही तो इन्हें
सींचती रही…!