‘Maine Kab Kaha’, a poem by Prita Arvind

मैंने कब कहा
कि मैं जो कहता हूँ
वही एक मात्र सत्य है
बाक़ी सब जो कहते हैं
सब मिथ्या है
एक से अधिक सत्य
भी तो हो सकते हैं
फिर अलग-अलग लोगों का
सत्य अलग-अलग भी हो सकता है

मैंने कब कहा
कि इस दुनिया में
सब कुछ ठीक है
सब कुछ सुन्दर है
अमन चैन है चारों ओर
लेकिन जो भी विकृत है
कुरूप है, असुन्दर है
उसे भी अपनाना होगा
वो सब कुछ भी हमारे हैं
यह समझना होगा

मैंने कब कहा
कि मंज़िल तक
पहुँचने के लिए
मेरा रास्ता ही
एक मात्र रास्ता है
मेल मंज़िल तक पहुँचने के
एक से अधिक रास्ते
भी हो सकते हैं
कोई थोड़ा लम्बा तो
कोई थोड़ा छोटा हो सकता है
लेकिन मंज़िल तक तो
सभी ले जाते हैं

अपने सत्य को सत्य
बाक़ी सब मिथ्या,
अपनी दुनिया सुन्दर
बाक़ी सब कुरूप विकृत,
अपना रास्ता ही एकमात्र सही
बाक़ी सब भूल भुलैया,
यही सोचना तो
सभी समस्याओं का जड़ है
मुझे यही तो कहना है

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