‘Mamooli Aadmi Ka Pyar’, a poem by Upma Richa

मामूली आदमी का प्यार
नहीं होता मामूली,
बेरोज़गारी और
आत्महत्या के बारे में
सोचते हुए भी
वो नहीं रहने देता
बाँझ
सपनों के खेत

मामूली आदमी का प्यार
घिसी हुई चप्पल के परों पर
उड़ता है भरपूर,
नापता है आसमान,
तोड़ना चाहता है तारे
और उगाना चाहता है
एक अदद गुलाब…

मामूली आदमी का प्यार…

यह भी पढ़ें:

नवल शुक्ल की कविता ‘अब मैं कैसे प्यार करता हूँ’
जोशना बैनर्जी आडवानी की कविता ‘अलबत्ता प्रेम’
अनुराग तिवारी की कविता ‘शब्दों का मारा प्रेम’
निशांत उपाध्याय की कविता ‘प्रेम और कविता’

Recommended Book:

Previous articleपरिपक्व प्रेम
Next articleअसमंजस
उपमा 'ऋचा'
पिछले एक दशक से लेखन क्षेत्र में सक्रिय। वागर्थ, द वायर, फेमिना, कादंबिनी, अहा ज़िंदगी, सखी, इंडिया वाटर पोर्टल, साहित्यिकी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलेखों का प्रकाशन। पुस्तकें- इन्दिरा गांधी की जीवनी, ‘एक थी इंदिरा’ का लेखन. ‘भारत का इतिहास ‘ (मूल माइकल एडवर्ड/ हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया), ‘मत्वेया कोझेम्याकिन की ज़िंदगी’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ द लाइफ़ ऑफ़ मत्वेया कोझेम्याकिन) ‘स्वीकार’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ 'कन्फेशन') का अनुवाद. अन्ना बर्न्स की मैन बुकर प्राइज़ से सम्मानित कृति ‘मिल्कमैन’ के हिन्दी अनुवाद ‘ग्वाला’ में सह-अनुवादक. मैक्सिम गोर्की की संस्मरणात्मक रचना 'लिट्रेरी पोर्ट्रेट', जॉन विल्सन की कृति ‘इंडिया कॉकर्ड’, राबर्ट सर्विस की जीवनी ‘लेनिन’ और एफ़. एस. ग्राउज़ की एतिहासिक महत्व की किताब ‘मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मेमायर’ का अनुवाद प्रकाशनाधीन. ‘अतएव’ नामक ब्लॉग एवं ‘अथ’ नामक यूट्यूब चैनल का संचालन...सम्प्रति- स्वतंत्र पत्रकार एवम् अनुवादक

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here