‘Man Karta Hai’, a poem by Baba Nagarjun

मन करता है :
नंगा होकर कुछ घण्टों तक सागर-तट पर मैं खड़ा रहूँ
यों भी क्या कपड़ा मिलता है?
धनपतियों की ऐसी लीला!

मन करता है :
नंगा होकर दूँ आग लगा, जो पहन रखा है उसमें भी
फिर बनूँ दिगम्बर बम्भोला
नंगा होकर विषपान करूँ सागर-तट पर-
कालकूट तू कहाँ गया?
ओ हालाहल त कहाँ गया?
अमृत की बात नहीं पूछो,
विष तक का बूँद नहीं मिलता
देवता हुए निर्लज्ज, सभी को छिपा दिया।
कहते जाओ, उनसे माँगो
जो क्षीर उदधि में शेषनाग की शैया पर कर रहे शयन।
भण्डार हमारा खाली है :
भगवान सभी के मालिक हैं;
लाचारी है, कुछ भी हम तुमको दे न सके!

मन करता है :
मैं नंगा होकर चिल्लाऊँ
मैं ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाऊँ
यदि मरा न होगा, सुन लेगा भगवान विष्णु सागरशायी

मन करता है :
मैं उस अगस्त्य-सा पी डालूँ सारे समुद्र को अंजलि से
उस अतल-वितल में तब मुझको
मुर्दा भगवान दिखायी दे
उस महामृतक को ले आऊँ फिर इस तट पर
अंत्येष्टि करूँ; लकड़ी तो बेहद महँगी है
इस बालू में ही दफ़ना दूँ
नंगा करके
निर्लज्ज देवता-गण, ले लेना तुम उसका वह भी पीताम्बर
अनमोल रेशमी पीताम्बर!
छिप-छिप उसको पहने सुरेश
छिप-छिप उसको पहने कुबेर
छिप-छिप उसको पहनो फिर तुम सब एक-एक कर बार-बार

मन करता है :
नंगा होकर मैं खड़ा रहूँ सागर-तट पर
कुछ घण्टों तक क्या, जीवन-भर
नंगा होकर
यों भी क्या कपड़ा मिलता है!

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Book by Baba Nagarjun:

नागार्जुन
नागार्जुन (३० जून १९११-५ नवंबर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया।