‘Mera Aakhiri Khat’, a poem by Nidhi Gupta

मेरे मरने से पहले
मैं आख़िरी ख़त तुम्हें लिखूँगा
लिखूँगा उसमें-
अपना सपना,
अपना घर,
अपने ध्वस्त मंदिर की कहानी
मेरी उधड़ी हुई सबसे पुरानी कविता
कविता में रोते-बिलखते इंसान
कुछ प्लास्टिक के चेहरे
छीली गई चमड़ी की छीलन भी लिखूँगा
ख़ून का नीलापन भी
और एक स्त्री के मासिक धर्म से गिरते माँस के लोथड़े सब

मैं आस की ज्योति में लिखूँगा-
हरे रेगिस्तान,
फले-फूले खलिहान,
मेरी हथेलियों को भरे तुम्हारे चुम्बन
जगमग किसी वृद्ध का मन

मैं उन सभी नदियों को लिख दूँगा जिन्होंने मिटाया क्रोध
वो ज्वाला जो भभकी थी अपमानित होने पर
साइकिल का वो पहिया जिसने देखा था केवल तुम्हारे घर का रस्ता
तुम्हारी फ़िरोज़ी बिंदी
ट्रैफ़िक में रुकी काली गाड़ी
सिग्नल में मिला सफ़ेद इशारा
उन लाइटों से ज़ियादा रौशनाई तुम्हारा बदन

शीशी से गिरता महावर
ऐ अजनबी
मेरे मरने से पहले
मैं आख़िरी ख़त तुम्हें लिखूँगा।

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