यह नज़्म यहाँ देखें:

मुझे मत बताना
कि तुम ने मुझे छोड़ने का इरादा किया था
तो क्यूँ
और किस वजह से
अभी तो तुम्हारे बिछड़ने का दुख भी नहीं कम हुआ
अभी तो मैं
बातों के, वादों के शहर-ए-तिलिस्मात में
आँख पर ख़ुश-गुमानी की पट्टी लिए
तुम को पेड़ों के पीछे, दरख़्तों के झुण्ड
और दीवार की पुश्त पर ढूँढने में मगन हूँ
कहीं पर तुम्हारी सदा और कहीं पर तुम्हारी महक
मुझ पे हँसने में मसरूफ़ है
अभी तक तुम्हारी हँसी से नबर्द-आज़मा हूँ
और इस जंग में
मेरा हथियार
अपनी वफ़ा पर भरोसा है और कुछ नहीं
उसे कुंद करने की कोशिश न करना
मुझे मत बताना…

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परवीन शाकिर
सैयदा परवीन शाकिर (नवंबर 1952 – 26 दिसंबर 1994), एक उर्दू कवयित्री, शिक्षक और पाकिस्तान की सरकार की सिविल सेवा में एक अधिकारी थीं। इनकी प्रमुख कृतियाँ खुली आँखों में सपना, ख़ुशबू, सदबर्ग, इन्कार, रहमतों की बारिश, ख़ुद-कलामी, इंकार(१९९०), माह-ए-तमाम (१९९४) आदि हैं। वे उर्दू शायरी में एक युग का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी शायरी का केन्द्रबिंदु स्त्री रहा है।

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