नदी एक प्रेयसी है
सागर एक प्रेमी,
नदी ने पहाड़ों से संघर्ष किया
एक-एक बूँद जोड़,
मैदान पैदा किये और जीती रही
बिन ब्याही माँ बन,
सागर दबाये रहा कई योजन रहस्य;
नदी कभी जड़ नहीं रही
समय बदलने पर उसने रास्ते बदले
जंगल जानवर आसमान बदले,
उसने अपने जल में जलाये रखी
प्रेमी से मिल जाने की आकांक्षा,
सागर ने किनारों पर थोपी अपनी उत्कंठा;
नदी सौम्य होती चली गई
जैसे-जैसे पास पहुँची,
सागर ने लहरों की भुजाएँ फैला लीं;
नदी पूरा देश लाँघ कर पहुँची उसके पास
साथ में नहीं लाई अपनी यात्रा का चिट्ठा,
ना पहाड़ों को काटने की व्यथा
ना बर्फ़ीली वादियों की सिहरन
ना ही फेंके गए लांछनों की कतरन,
वो सिर्फ मैदानों का प्रणाम ले कर आई;
सागर अपनी जगह पर ही खड़ा रहा
गहराई को दैवीय शक्ति समझते हुए;
नदी प्रेमिका बन सागर में मिल गई
सागर ने प्रेमी बन उसको स्वीकार किया,
कवियों ने उन पर प्रेम कविताएँ लिखीं;
तभी से,
नदी एक देवी हो कर औरत बनी रही,
सागर पुरुष हो कर महान माना गया।
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अद्भुत, अप्रतिम।