मौजूदा दौर में
जब सुबह घर से निकले लोगों का
शाम को सकुशल लौट आना
सर्वाधिक संदिग्ध होता जा रहा है!

प्रेम ही है
जो हर सदी के यथार्थ को संत्रास बनने से रोक सकता है!

और
हमारे दौर का सबसे शर्मनाक पहलू यह भी है कि
हम इस अर्थ में पूर्ण-शिक्षित तो हो चुके हैं कि
जंगल में सर्वाधिक क़ाबिल ही ज़िन्दा बचा रहेगा..

लेकिन फिर भी
हम अब तक
प्रेम में इतने नाक़ाबिल क्यों साबित होते जा रहे हैं!

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मंजुला बिष्ट
बीए. बीएड. गृहणी, स्वतंत्र-लेखन कविता, कहानी व आलेख-लेखन में रुचि उदयपुर (राजस्थान) में निवासइनकी रचनाएँ हंस, अहा! जिंदगी, विश्वगाथा, पर्तों की पड़ताल, माही व स्वर्णवाणी पत्रिका, दैनिक-भास्कर, राजस्थान-पत्रिका, सुबह-सबेरे, प्रभात-ख़बर समाचार-पत्र व हस्ताक्षर, वेब-दुनिया वेब पत्रिका व हिंदीनामा पेज़, बिजूका ब्लॉग में भी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं।

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