सड़कें, साइकिल और हमारे सजे हुए सपने
किसी थकी हुई भाषा के शब्दों की तरह रुक गए हैं,
चमत्कार की भाषा की चाह में
हमने दूर से ईश्वर को पुकारा
आवाज़ों के प्रसाद चढ़ाए
ऐसे ही जगाये रखी हमने अपनी भाषा।
कोई नहीं कर सकेगा उनकी मदद
सूखे शहर की सड़कों पर जो पक रहे
पिघल रहे हैं जिनके साइकिल के पहिये
जिनके ऊपर के बादल कब के बिखर चुके
जो ख़ुद के सपनों को खा रहे हैं
वो ख़ुद ही करेंगे अपना उपचार
चमत्कार नहीं करेंगे
सड़कों पर नहीं, धूल पर चलेंगे
ऐसे ही रचेंगे वो नयी भाषा।