सड़कें, साइकिल और हमारे सजे हुए सपने
किसी थकी हुई भाषा के शब्दों की तरह रुक गए हैं,
चमत्कार की भाषा की चाह में
हमने दूर से ईश्वर को पुकारा
आवाज़ों के प्रसाद चढ़ाए
ऐसे ही जगाये रखी हमने अपनी भाषा।

कोई नहीं कर सकेगा उनकी मदद
सूखे शहर की सड़कों पर जो पक रहे
पिघल रहे हैं जिनके साइकिल के पहिये
जिनके ऊपर के बादल कब के बिखर चुके
जो ख़ुद के सपनों को खा रहे हैं

वो ख़ुद ही करेंगे अपना उपचार
चमत्कार नहीं करेंगे
सड़कों पर नहीं, धूल पर चलेंगे
ऐसे ही रचेंगे वो नयी भाषा।

विशेष चंद्र ‘नमन’
विशेष चंद्र नमन दिल्ली विवि, श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज से गणित में स्नातक हैं। कॉलेज के दिनों में साहित्यिक रुचि खूब जागी, नया पढ़ने का मौका मिला, कॉलेज लाइब्रेरी ने और कॉलेज के मित्रों ने बखूबी साथ निभाया, और बीते कुछ वर्षों से वह अधिक सक्रीय रहे हैं। अपनी कविताओं के बारे में विशेष कहते हैं कि अब कॉलेज तो खत्म हो रहा है पर कविताएँ बची रह जाएँगी और कविताओं में कुछ कॉलेज भी बचा रह जायेगा। विशेष फिलहाल नई दिल्ली में रहते हैं।