“मैं पेड़ नहीं बनना चाहता, मैं पेड़ का मतलब होना चाहता हूँ।”

 

“बताओ तो फिर, प्रेम में इंसान मूर्ख हो जाता है या केवल मूर्ख ही प्रेम में पड़ते हैं?”

 

“वे किताबें जिन्हें हम दिलासा पाने का माध्यम समझ बैठते हैं, केवल हमारे दुखों को प्रगाढ़ करती हैं।”

 

“जो किसी प्रेमी का चेहरा तुम्हारे हृदय पर ज्यों का त्यों अलंकृत रह पाया हो, तो यह संसार अब भी तुम्हारा घर है।”

 

“रंग आंखों का स्पर्श है,
बहरों का संगीत
अंधेरे से कढ़ा एक शब्द!”

 

“कुत्ते बोलते हैं, लेकिन केवल उनसे जो सुनना जानते हैं।”

 

“जानना देखे गए को याद रखना है, देखना बिना याद रखे जानना है।”

 

“कला में निराशा से बचने के लिए, उसे कभी व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए।”

 

“चित्रकारी विचार का मौन और दृष्टि का संगीत है।”

 

“केवल मूर्ख ही बेक़सूर हैं।”

 

(अनुवाद: शिवा)

ओरहान पामुक
उपन्यासकार ओरहन पामुक का जन्म 1952 इस्तांबुल में हुआ ! उनके माता-पिता इंजनियरिंग में थे, इसलिए उनको भी इसी की सलाह दी गई ! इसके बावजूद वे बचपन में चित्रकार बनना चाहते थे, लेकिन अचानक उनकी रुचि साहित्य की तरफ झुकी और फिर उन्होंने 1974 से अपना लेखन प्रारंभ किया !