‘Paani’, short poems by Harshita Panchariya

1

उसने मुझसे कहा-
“तुम पानी के जैसी हो
इसलिए कभी ठहरती नहीं…”
मैंने कहा –
“पानी ठहर गया
तो काई का पनपना निश्चित है!”

और तुम फिसलते बहुत हो।

2

पानी को सहेजने की सम्भावनाएँ
जब समाप्त हो जाएँ तो
मैं देना चाहूँगी
मेरी आँखों से दो बूँदे

देखना!
तुम अचम्भित रह जाओगे,
कि ये काँटेदार नागफनी
उम्मीदों से अधिक
तरल निकली।

पानी की तरह दिखना सबसे सरल है
पानी की तरह होना सबसे विषम है
ठोस से तरल, तरल से वाष्प बनने में…
कितना कुछ खोना पड़ता है
और तुम कहते हो-
“सहज है निरन्तरता में दृश्यमान बने रहना।”

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