व्यापार और प्यार: एक गणित

यह जो
हम लेते हैं
यह जो
हम देते हैं
व्यापार है
इसमें से घटा दो अगर
लाभ-हानि का
जो विचार है
तो बाक़ी बचा
प्यार है!

फिर प्यार में
जोड़ लो
जो भी जोड़ना चाहो
सौंदर्य और गुण,
प्यार
सम्पन्नतर होता जाएगा
मनुष्य-जीवन
बेहतर!

लिया-दिया प्यार

तुमने मुझे
फूलों के बारे में
अच्छी जानकारी दी
अर्थात् पुष्प-ज्ञान

मैंने तुम्हें
चिड़ियों के बारे में
अपनी जानकारी दी
अर्थात् खग-विज्ञान

मगर जो हमने
प्यार लिया-दिया
वह एक ही रहा!

मैंने क्या ग़लत कहा?

एक ही

एक आँख से
यह दिखायी देता है
एक आँख से वह

यह-वह
एक ही है
व्यक्ति

हैरान है दिमाग़
उस पर
मत की माँग!

समय का ग़लत अंदाज़ा

दोपहर में बारिश हुई
और मुझे पता नहीं चली
समय की सुई
मुझे लगा शाम हो गयी
मुझे लौटना चाहिए घर
घुमाई छोड़कर
एक सवेरे से,
मोबाइल भी स्वीच ऑफ़
कि और तस्वीर लूँ

क्या तेज़
और फिर झीनी-झीनी बारिश थी
क्या सुंदर और धुले हुए नज़ारे थे!

ओह,
अभी चार ही बजे हैं
बता रही है
घर की घड़ी!

शोर और तमाशा

जितना शोर होता है
उतना तमाशा नहीं
अजीब बात तो यह है

शोर था कि
दिन काला हो जाएगा
जबकि वह कुछ देर के लिए सँवलाया
जब सूर्य ग्रहण चरम पर आया
फिर सारा समय यथावत

न धरती के अंदर की चट्टानें खिसकीं
न पहाड़ के ऊपर की
समुंदर ने कोई छलाँग नहीं मारी
कहीं धरती नहीं फटी

शोर में बड़े ज़ोर से शामिल थे ये भी
लेकिन हमें पता थी हक़ीक़त
जो पता चल गयी सबको

अब रह गया ज्योतिष
जो रहता ही है
हर तमाशे में घुसकर
अपना जहन्नुम और जन्नत लिए
उस पर
कोई टिप्पणी नहीं जायज़!

नया शिगूफ़ा

यह जो
ख़ून-पसीना
हमने बहाया है
हमें इसका सिला मिलेगा
दिव्य फूल खिलेगा
उसकी ख़ुशबू से
हमारा जीवन महकेगा

वह जो विश्वास दिलाया गया था
उसका क्या हुआ
कि अब नया शिगूफ़ा
खिलाने चले हम
फिर ख़ून-पसीना
बहाने चले हम?

पानी की कमी

उस नदी को
इस नदी से जोड़ेंगे
इस नदी को
उस नदी से
हर नदी से
हर नदी को
इससे पानी की कमी दूर होगी

मगर पानी की कमी क्यों हुई
जिस देश में गंगा बहती है,
सोचा?
सोचा,
प्यार की कमी क्यों हुई
इस देश में?
सोचा,
प्यार की कमी से
पानी की कमी कैसे होती है?

जब प्यार की कमी दूर होगी
पानी की कमी दूर होगी

पानी को पानी से जोड़कर
कुछ नहीं होगा भ्रांतमति!
अगर कमी बनी रही
प्यार की
जीव और प्रजीव के प्रति।

दो गज़ की दूरी

कहाँ जाओ
दो गज़ की दूरी बनाकर

जहाँ जाओ
वहीं होता है
कहाँ आ गए

शानदार सार्वजनिक फाटक बंद
अंदर डाँकोगे कहाँ

निर्जन जगह भी
निर्जन ही रहना चाहती है
पत्थर उठा नहीं सकता तुमको
मगर वह भी चाहता है तुमसे
दो गज़ की दूरी

घर में रहो
ताकि जहान आबाद रहे
और कल को
तुम्हें याद रहे
मौत का यह लम्बा पल
जो बीत रहा है

ज़रूरत इस करुणा की

बाज़ की गिरफ़्त में
कबूतर हो तो
क्या उसे छुड़ाना चाहिए
अगर छुड़ाते हैं तो
बाज़ के लिए माँस
कहाँ से लाना चाहिए

ज़रूरत उस करुणा की नहीं
ज़रूरत इस करुणा की है
जो कबूतरों को घोंसला दे
हमारे घरों में…

केशव शरण
जन्म- 23-08-1960 | निवासी- वाराणसी | प्रकाशित कृतियां- तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह), जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह), दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह), कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह), एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कविता संग्रह), दूरी मिट गयी (कविता संग्रह), क़दम-क़दम (चुनी हुई कविताएं), न संगीत न फूल (कविता संग्रह), गगन नीला धरा धानी नहीं है (ग़ज़ल संग्रह)