‘Prateekshit Striyaan’, a poem by Harshita Panchariya
‘प्रतीक्षित हूँ’
यह सुनने मात्र से ही
हम ने बिता दी कितनी ही सदियाँ
इतनी कि
कदाचित धूमिल हो गईं
कितनी ही सुखद स्मृतियाँ।
प्रतीक्षा में स्त्रियाँ पोषित कर लेती हैं
वह अभिलाषाएँ,
जिनकी कल्पना मात्र से ही
वह कामनाओं का पूर्णविराम समझ लेती हैं
और अब वह इतनी अभ्यस्त हो गई हैं
कि उसे ही अपनी नियति मान बैठी हैं।
प्रतीक्षा में स्त्रियाँ शापित हो जाती हैं
फिर हम तो सदियों से ही पाषाण हैं
इसलिए कभी पूजा गया
तो कभी तोड़ा गया
पर कभी समझा नहीं गया।
अगर प्रतीक्षा में प्रेम की उम्मीद दिखे
तो बताना
आख़िर कुछ पाषाणों पर
प्रेम की दूब उगाना आवश्यक है।
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