‘Prateeksha’, Hindi Kavita by Rashmi Saxena
समुद्र की सभी लहरें
शंकाओ से घिरी
प्रेमिकाएँ हैं जो आ-आकर
तटों पर टहलतीं और
लौट जातीं
प्रेमी के वापस आने की
आस में
साँसों की भट्टी पर
चढ़ी उम्मीद पकती है
उफ़नती है और जलते ही
फिर उड़ेल दी जाती गले तक भरकर
गलती हुई देह के भीतर
एक टुकड़ा आसमान
पंख पसारे उड़ता और दूसरे ही क्षण
मरुस्थल की उड़ती रेत-सा
रेज़ा-रेज़ा बिखर जाता
प्रतीक्षा
प्रेम की सबसे जटिल
अवस्था है
और प्रेम को
बचा ले जाने की
क़वायद भी…!!
'प्रतीक्षा प्रेम की विडम्बना होती है, प्रतिफल नहीं'