यह कविता यहाँ सुनें:

आज जब पड़ रही है कड़ाके की ठण्ड
और पानी पीना तो दूर
उसे छूने से बच रहे हैं लोग
तो ज़रा चलकर देख लेना चाहिए
कि अपने संकट की इस घड़ी में
पानी क्या कर रहा है

अरे! वह तो शीर्षासन कर रहा है
सचमुच झीलों, तालाबों और नदियों का पानी
सिर के बल खड़ा हो रहा है

सतह का पानी ठण्डा और भारी हो
लगाता है डुबकी
और नीचे से गर्म और हल्के पानी को
ऊपर भेज देता है ठण्ड से जूझने

इस तरह लगतार लगाते हुए डुबकियाँ
उमड़ता-घुमड़ता हुआ पानी
जब आ जाता है चार डिग्री सेल्सियस पर
यह चार डिग्री क्या?

यह चार डिग्री वह तापक्रम है, दोस्तो!
जिसके नीचे मछलियों का मरना शुरू हो जाता है
पता नहीं पानी यह कैसे जान लेता है
कि अगर वह और ठण्डा हुआ
तो मछलियाँ बच नहीं पाएँगी

अचानक वह अब तक जो कर रहा था
ठीक उसका उल्टा करने लगता है
यानि कि और ठण्डा होने पर भारी नहीं होता
बल्कि हल्का होकर ऊपर ही तैरता रहता है

तीन डिग्री हल्का
दो डिग्री और हल्का और
शून्य डिग्री होते ही, बर्फ़ बनकर
सतह पर जम जाता है

इस तरह वह कवच बन जाता है मछलियों का
अब पड़ती रहे ठण्ड
नीचे गर्म पानी में मछलियाँ
जीवन का उत्सव मनाती रहती हैं

इस वक़्त शीत-कटिबन्धों में
तमाम झीलों और समुद्रों का पानी जमकर
मछलियों का कवच बन चुका है

पानी के प्राण मछलियों में बसते हैं
आदमी के प्राण कहाँ बसते हैं, दोस्तो!
इस वक़्त
कोई कुछ बचा नहीं पा रहा है
किसान बचा नहीं पा रहा है अन्न को
अपने हाथों से फ़सलों को आग लगाए दे रहा है
माताएँ बचा नहीं पा रहीं बच्चे
उन्हें गोद में ले
कुओं में छलाँगें लगा रही हैं

इससे पहले कि ठण्डे होते ही चले जाएँ
हम, चलकर देख लें
कि इस वक़्त जब पड़ रही है कड़ाके की ठण्ड
तब मछलियों के संकट की इस घड़ी में
पानी क्या कर रहा है।

नरेश सक्सेना की कविता 'आधा चाँद माँगता है पूरी रात'

Book by Naresh Saxena:

नरेश सक्सेना
जन्म : 16 जनवरी 1939, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) कविता संग्रह : समुद्र पर हो रही है बारिश, सुनो चारुशीला नाटक : आदमी का आ पटकथा लेखन : हर क्षण विदा है, दसवीं दौड़, जौनसार बावर, रसखान, एक हती मनू (बुंदेली) फिल्म निर्देशन : संबंध, जल से ज्योति, समाधान, नन्हें कदम (सभी लघु फिल्में) सम्मान: पहल सम्मान, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1992), हिंदी साहित्य सम्मेलन का सम्मान, शमशेर सम्मान