Poems: Gaurav Bharti

वृत्त

बहुत आसान है
ढलती हुई इस उम्र में भी
बच्चा हो जाना

सौंपकर ख़ुद को
तुम्हारी बाँहों के वृत्त में
मैं बच्चा हो जाता हूँ…

प्रतीक्षा

तुमसे मिलकर
जब हुई घण्टों लफ़्ज़ों की अदला-बदली
मुझे पहली दफ़ा ऐसा लगा
मानों मेरे ख़्वाब भी तन्हाई के शिकार हैं
उसी तरह जैसे कोई कुआँ

चलते फिरते
मिलते भेंटते
सैंकड़ों इंसान
सिवाय खोल के कुछ नहीं लगते
जो रोज़ बदल जाते हैं

मैं देखता हूँ
खिड़की के उस पार
चौराहे पर खड़े अकेले दरख़्त को
जो लगातार सूख रहा है
सूखना एक महानगरीय विकार है

अस्पताल के प्रतीक्षा कक्ष की दीवार पर
एक घड़ी टंगी है
जो न जाने कब से बंद पड़ी है
छोटी-बड़ी सुइयाँ मिलकर
सात बजा रही हैं
मानों कोई दायीं करवट लिए सोया हो
और उसे जगाने वाला
कोई नहीं है।

अल्पविराम

लम्बे वाक्य में
पूर्ण विराम से पहले का
अल्पविराम हो तुम
जहाँ आकर मैं
ठहरता हूँ
सुलझता हूँ
और अन्ततः सम्प्रेषित होता हूँ…

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गौरव भारती
जन्म- बेगूसराय, बिहार | संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, मुंशी सिंह महाविद्यालय, मोतिहारी, बिहार। इन्द्रप्रस्थ भारती, मुक्तांचल, कविता बिहान, वागर्थ, परिकथा, आजकल, नया ज्ञानोदय, सदानीरा,समहुत, विभोम स्वर, कथानक आदि पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित | ईमेल- [email protected] संपर्क- 9015326408