घोंसला
मुझे नहीं पता
मेरे पास कितना वक़्त शेष है
उम्र का कितना हिस्सा जी चुका
कितना रह गया है बाक़ी
मैं नहीं जानता
आजकल बहुत कम सोता हूँ
बहुत कुछ है
जिसके अधूरे छूट जाने का डर बना रहता है
नींद अचानक से टूटती है
एक मनहूस ख़्वाब
कई दिनों से मेरे पीछे पड़ा है
घड़ी बहुत शोर करने लगी है
दोनों कानों को अपनी हथेलियों से ढककर सोने की कोशिश करता हूँ
पंखे की आवाज़
लगातार कानों में गिर रही है
मैं उठकर छत पर चला जाता हूँ
पंछियों ने दाना चुग लिया है
देखकर तसल्ली होती है
घर के पीछे खड़े लम्बे ताड़ में
कई पतंगें उलझी हुईं फरफरा रही हैं
उलझकर हर शय टूट जाती है
मैं सुलझकर
एक घोंसला होना चाहता हूँ
जहाँ एक चिड़िया
बेफ़िक्र होकर सहेज सके अपने अण्डे
और ले सके
अपने हिस्से की पूरी नींद…
भाषा
मैंने हमेशा चाहा
मेरी आँखों की भाषा पढ़ सको तुम
मैंने हमेशा चाहा
तुम समझ सको
मेरी खीझ में गुम्फित ख़ामोशी को
मैंने हमेशा चाहा
तुम समझ सको
अपनी देह पर उभरती और मिटती श्वासलिपि को
व्यक्त को समझना आसान है
अव्यक्त को समझना थोड़ा मुश्किल
पता है तुम्हें
तमाम युद्ध
तमाम हत्याएँ
तमाम योजनाएँ
सबसे पहले भाषा में घटित होती हैं
सुनो,
हम भाषा में सिर्फ़ प्रेम करेंगे
तुम अपनी भाषा में प्रेम करना
मैं अपनी भाषा में प्रेम करूँगा
भाषा कोई भी हो
प्रेम की भाषा सर्वनाम मुक्त होनी चाहिए…