Poems: Gunjan Srivastava

स्त्री के गर्भ से ही

संसार स्त्री के गर्भ में
तय किया गया एक कार्यक्रम है,
इसी गर्भ में सोयी हुई हैं
आने वाली
कई सदियों की पीढ़ियाँ और
उनके अनगिनत पात्र

आने वाली सदी का प्रधानमंत्री,
कोई महानायक, तानाशाह, महाकवि
या तुम्हारा राष्ट्रपति भी अभी कहीं उसी स्त्री
के गर्भ में दुबका है

और मिला-जुलाकर वही
तुम्हारे ईशु और राम तक का
पहला और असली पता है!

सुनो पुरुष

सुनो पुरुष
चिपककर रहना
उसकी माँग से तुम!

लिपटे रहना
पूरी ताक़त लगाकर
अपनी जान की ख़ातिर
उसके मेहनतकश हाँथों में
उसकी चूड़ियों से

और अपने वजूद
की ख़ातिर
लटके रहना उस ‘अबला’
के गले से
अपनी साँसें थाम
जिसने बाँध रखा है
तुम्हें और तुम्हारे
क़ीमती प्राण को
अपने मंगलसूत्र में!

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गुँजन श्रीवास्तव 'विधान'
शिक्षा- जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय | पता- समस्तीपुर (बिहार)

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