प्रतीक्षा
जब उतर जाए
आँखों से उम्मीद का पानी
और
वीरान सड़कों पर
सुनायी दे
कुत्ते और बिल्लियों का रुदन
उस समय मत टटोलना
किसी की नब्ज़
बस झाँक लेना
उन एक जोड़ी आँखों में
जो किसी प्रतीक्षा में है।
क्योंकि
एक निश्चित अन्तराल के बाद
प्रतीक्षा उदासी में बदल जाती है
और उदासी की उम्र अक्सर लम्बी होती है।
पत्थर और मनुष्य
आग की समझ
हज़ारों साल पहले
ईजाद हुई थी
सभ्यता
पत्थरों के टकराने से
अब हज़ारों साल बाद
बर्बाद हो रही है
सभ्यता
मनुष्यों के टकराने से
इतने सालों में अब आग ने
समझा कि
कठोरता
क्रूरता से बेहतर है!
सीख
दो पत्थरों के रिक्त स्थान के
मध्य
उग जाती है हरी नर्म दूब
दो मनुष्यों के रिक्त विचारों के
मध्य
खड़ी हो जाती है अहम की दीवार
रिक्तता के मध्य स्वयं को हरा भरा और
नर्म रखने का हुनर
मनुष्यों को पत्थरों से सीखना चाहिए।
हिसाब
मनुष्य पत्थर बन सकता है
पत्थर ईश्वर बन सकता है
पर मनुष्य को ईश्वर बनने में
कितने पत्थरों को तोड़ना होगा
इसका हिसाब पूछना था…
मृत्यु
हे मृत्यु!
कितनी निष्ठुर हो गई हो तुम
इतनी कि रुक ही नहीं रही हो
असंख्य वेदनाओं के रुदन से
अनन्त प्रार्थनाओं के स्वर से
और अब
इन हथेलियों की रेखाओं को भी नहीं पता कि
कितनी दिशाओं से आओगी तुम।
मृत्यु कहती है कि
यहाँ जीवन निषिद्ध है
पर जीवन तो कभी कह ही नहीं पाया
कि यहाँ मृत्यु निषिद्ध है
क्योंकि
निषिद्धता का नियम
योद्धाओं के हिस्से नहीं वरन
शासकों के हिस्से आया।
पर यक़ीन मानो,
हम सब अभ्यस्त हो रहे हैं
असमय और अकारण हो रहे युद्ध के
और हमारा अभ्यस्त होना
इस बात का परिचायक है कि
परिवर्तन के नियम क्रम में अस्त होना निषिद्ध है!