कुर्सी

कुर्सी
पहले कुर्सी थी
फ़क़त कुर्सी,
फिर सीढ़ी बनी
और अब
हो गई है पालना,
ज़रा होश से सम्भालना!

भूख से नहीं मरते

हमारे देश में
आधे से अधिक लोग
ग़रीबी की रेखा के नीचे
जीवन बसर करते हैं,
लेकिन भूख से
कोई नहीं मरता,
सभी मौत से मरते हैं,
हमारे नेता भी
कैसा कमाल करते हैं!

मैं अकेला नहीं

मैं अकेला कभी न था
और न आज हूँ,
क्योंकि मैं तो
सर्वहारा की आवाज़ हूँ,
उनका हँसना मेरा हँसना है
उनका रोना मेरा रोना है,
दुनिया
जिनके मिट्टी सने हाथों-
बना खिलौना है।

प्रजातन्त्र में

तुम मुझे
सेठों की तिजोरी का ताला बना
लटका देना चाहते हो,
पर ऐसे तालों पर
मज़दूर की एक चोट हूँ मैं
प्रजातन्त्र में
समझ से दिया वोट हूँ मैं!

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