Poems: Mahima Shree

विदा से पहले

मृत्यु शय्या से उठकर
चुन रही हूँ प्रेम के अनगिन फूल

जीवन वीथिका में शेष बचे वर्षों के
झड़ने से पहले
सीख लेने हैं मल्लाहों के गीत

अंकित कर लेने हैं अधर-राग पर कुछ नाम
जिन्हें पुकार सकूँ
विदा से पहले।

इस बार नहीं

एक दिन
तुमने कहा था-
मैं सुंदर हूँ
मेरे गेसू काली घटाओं की तरह हैं
मेरे दो नैन जैसे मद के प्याले

चौंककर शर्मायी
कुछ पल को घबरायी
फिर मुग्ध हो गयी
अपने आप पर
पर जल्द ही उबर गयी
तुम्हारे वागविलास से

फँसना नहीं है मुझे
तुम्हारे जाल में

सदियों से
सजती सँवरती रही
तुम्हारे मीठे बोल पर

डूबती उतराती रही
पायल की छन-छन में
झुमके, कंगन, नथुनी,
बिंदी की चमचम में

भूल गयी
प्रकृति के विराट सौन्दर्य को
वंचित हो गयी
मानव जीवन के
उच्चतम सोपानों से
और
तुमने छक कर पीया
जम के जीया
जीवन के आयामों को…
पर इस बार नहीं!

भरमाओ मत
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो!

साथ चलना है, चलो
देहरी सिर्फ़ मेरे लिए
हरगिज़ नहीं…

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महिमा श्री
रिसर्च स्कॉलर, गेस्ट फैकल्टी- मास कॉम्युनिकेशन , कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन कविता,गज़ल, लधुकथा, समीक्षा, आलेख प्रकाशन- प्रथम कविता संग्रह- अकुलाहटें मेरे मन की, 2015, अंजुमन प्रकाशन, कई सांझा संकलनों में कविता, गज़ल और लधुकथा शामिल युद्धरत आदमी, द कोर , सदानीरा त्रैमासिक, आधुनिक साहित्य, विश्वगाथा, अटूट बंधन, सप्तपर्णी, सुसंभाव्य, किस्सा-कोताह, खुशबु मेरे देश की, अटूट बंधन, नेशनल दुनिया, हिंदुस्तान, निर्झर टाइम्स आदि पत्र- पत्रिकाओं में, बिजुका ब्लॉग, पुरवाई, ओपनबुक्स ऑनलाइन, लधुकथा डॉट कॉम , शब्दव्यंजना आदि में कविताएं प्रकाशित .अहा जिंदगी (साप्ताहिक), आधी आबादी( हिंदी मासिक पत्रिका) में आलेख प्रकाशित .पटना के स्थानीय यू ट्यूब चैनैल TheFullVolume.com के लिए बिहार के गणमान्य साहित्यकारों का साक्षात्कार

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