Poems: Mahima Shree
विदा से पहले
मृत्यु शय्या से उठकर
चुन रही हूँ प्रेम के अनगिन फूल
जीवन वीथिका में शेष बचे वर्षों के
झड़ने से पहले
सीख लेने हैं मल्लाहों के गीत
अंकित कर लेने हैं अधर-राग पर कुछ नाम
जिन्हें पुकार सकूँ
विदा से पहले।
इस बार नहीं
एक दिन
तुमने कहा था-
मैं सुंदर हूँ
मेरे गेसू काली घटाओं की तरह हैं
मेरे दो नैन जैसे मद के प्याले
चौंककर शर्मायी
कुछ पल को घबरायी
फिर मुग्ध हो गयी
अपने आप पर
पर जल्द ही उबर गयी
तुम्हारे वागविलास से
फँसना नहीं है मुझे
तुम्हारे जाल में
सदियों से
सजती सँवरती रही
तुम्हारे मीठे बोल पर
डूबती उतराती रही
पायल की छन-छन में
झुमके, कंगन, नथुनी,
बिंदी की चमचम में
भूल गयी
प्रकृति के विराट सौन्दर्य को
वंचित हो गयी
मानव जीवन के
उच्चतम सोपानों से
और
तुमने छक कर पीया
जम के जीया
जीवन के आयामों को…
पर इस बार नहीं!
भरमाओ मत
देवता बनने का स्वाँग
बंद करो!
साथ चलना है, चलो
देहरी सिर्फ़ मेरे लिए
हरगिज़ नहीं…
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