Poems by Shabana Kaleem Awwal

बाप

उदास शाम को बाँहों में भरकर
बुज़ुर्ग बाप के चेहरे को हाथों में भर लूँ
चूम लू उनको बेसाख़्ता
उन रोशनियों के एवज़ में
जो फूट रही हैं, मेरे चेहरे से…
बचपन में मिले ढेरों बोसों से!

मौहब्बत की लौ

फूल खिल गये…
मगर ज़िंदगी ख़ामोश है!
अगर तेरी मोहब्बत में लौ कम है
तो, आ…
मेरे ठण्डे फूलों की आग से ले ले!!!

इश्क

मंज़र-ए-शब-ताब में
ख़्वाब ख़्वाब
तुम्हारे अक्स रहें…
टुकड़ा-टुकड़ा शब चुराते,
इब्तिदा-ए-इश्क में
एक बार,
जो क्या चुराया,
ख़्वाब ख़्वाब सा अक़्स
तेरा…
टुकड़ा टुकड़ा…
किश्त किश्त…
देकर ख़ुद को,
क़ीमत अदा करते रहे
फिर उम्र तमाम!

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