मेरे देखने से

मैंने देखा
तो नीला हो गया आकाश,
झूमने लगे पीपल के चमकते हरे पत्ते।
मैंने देखा
तो सफ़ेद बर्फ़ से ढँका
भव्य पहाड़
एकदम से उग आया
क्षितिज पर।
मैंने देखा
तो चमकने लगी
तुम्हारी हँसी।
मैंने देखा
तभी उसी क्षण
दुनिया सुन्दर हुई।

मैंने देखा
तभी
उसी क्षण
मैं सुन्दर हुआ।

प्रेम में असफल लड़के पर कविता

तुम कैसे लिखोगे कोई कविता
प्रेम में असफल लड़के पर,
उसकी चमकती आँखों में यकायक बुझे
तारों का अंधेरा
और उसके लम्बे सधे डगों की
डगमगाहट
तुमको दिखेगी ही नहीं,
अगर तुम देखने लगोगे
उसे ऐन सामने से

पर्स के आख़िरी रुपयों से ख़रीदे गुलदस्ते
और बहुत सोचकर ख़रीदे
छोटे-छोटे तोहफ़ों में छुपे उसके नर्म गीत
तुम सुन नहीं पाओगे, कवि
क्योंकि बोलकर तो वह गाता नहीं था
सोचकर हँसता भी नहीं था तब
बस दमकता था अपनी ख़ुशी में उन दिनों,
दिन-रात,
तुम ने अगर सुन ली हो कभी,
देर रात की निस्तब्धता में
किसी लापरवाह एड़ी से कुचले
हरसिंगार के फूलों की धीमी,
घुटी कराह,
जो दबाते-दबाते भी निकल पड़ी हो,
भींचे हुए होंठों से
हाँ, तो तुम लिख लोगे एक कविता
उस लड़के पर,
जो अब गाता नहीं कुछ दिनों से

लेकिन अगर तुमने कोशिश की पढ़ने की, कुछ भी,
उसके चेहरे पर
तो सिर्फ़ एक गीला पठार दिखेगा वहाँ
और तुम कैसे लिखोगे कोई कविता
एक पठार पर?

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सिद्धार्थ बाजपेयी
हिंदी और अंग्रेजी की हर तरह की किताबों का शौकीन, एक किताब " पेपर बोट राइड" अंग्रेजी में प्रकाशित, कुछ कविताएं कादम्बिनी, वागर्थ, सदानीराऔर समकालीन भारतीय साहित्य में प्रकाशित. भारतीय स्टेट बैंक से उप महाप्रबंधक पद से सेवा निवृत्ति के पश्चात कुछ समय राष्ट्रीय बैंक प्रबंध संस्थान, पुणे में अध्यापन.सम्प्रति 'लोटस ईटर '.

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