पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल प्राण कहाँ है?
डूबा-डूबा सा अन्तर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं?
मेरी अभिलाषाएँ अनगिन
पूरी होंगी? यही है कठिन
जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं?
लाख परायों से परिचय है
मेल-मोहब्बत का अभिनय है
जिनके बिन जग सूना-सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं?