1

प्रेम को खोने के बाद सबसे मुश्किल है
कैलेण्डर पर वर्ष गिनना और तारीख़ों के दिन दोहराना
यह ऐसा है जैसे समय की आइसक्रीम में से
स्कूप भर प्रेम निकालना
और ठण्ड से जमकर मर जाना!

2

अगस्त के उदास सूरज को पछाड़ने
देश की अल्हड़ नदियाँ दम लगाती हैं,
विधान समय की सबसे ऊपरी नीली बर्थ पर सोता है
जहाँ से बस नीला समंदर दिखता है
इसके पारदर्शी छोरों में से क़ायदा छनकर
बाढ़ के दलदल में दफ़्न हो जाता है
जिसकी सतह पर
समता के शव बहते हैं

3

हमारी छातियाँ हमारे गीले वस्त्रों में ठण्डी थीं
चाँद का एक नम टुकड़ा हमारी आँखों में जमा था
और हमारी जातियाँ तुम्हारी सियासत को गर्म रखने का ईंधन थीं
जो समय की भट्टी में जल-जलकर राख हो गई थी

4

आत्मा एक स्थान है जो अन्न की तरह फैला है
शरीर और मन चक्की के दो पाट है
धर्म का हत्था तो लकड़ी का है
पर न जाने इसे कौन घुमा रहा है?

5

हमारी बनी-बनाई भाषा में
एक दूसरे को दुलारने और सहलाने के
संयुक्त वर्ण लोपित थे
लिपी अपढ़ थी अभी तक
अर्थ का अनर्थ होने की प्रक्रिया में
हम अपभ्रंशी शब्द आरोपित थे

6

नीली छत हमारे ऊपर ही भरभराकर गिर जाएगी
दलदल में आत्माएँ आकण्ठ धँस जाएँगीं
हमारी नश्वर सीमाओं के साथ
सरकारी भींतों पर टंगे
मानचित्रों पर जो रेखाएँ दिखती हैं
वे बहुत कठोर है
बिल्कुल हमारी हड्डियों की तरह!

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