‘Prem Ki Hatya’, a poem by Rashmi Saxena
मरा नहीं था प्रेम
अपितु हत्या की गयी थी उसकी
एक अंधेरे कमरे में बंद करके
कई दिनों तक भूखा रखा गया
फिर कुछ रोज़ बाद
उसको प्यासा रखा गया
साँसों में घुटन पैदा की गयी
नब्ज़ को चलने से बाधित किया गया
सपनों का गला काट दिया गया
इच्छाओं के गले में फँदा बाँधकर
लटका दिया गया
इतनी निर्मम हत्या की
एक मात्र गवाह दो आँखें
हर रात उसकी क़ब्र पर
अपना माथा पीटती, आँसू बहाती
और लौट जाती
अभी तक हत्या का हथियार
बरामद नहीं किया जा सका
दुनिया की हर अदालत में
वादी की मानसिक स्थिति ठीक होने तक
यह मुक़दमा मुल्तवी कर दिया गया
हत्याभियुक्त घरों, गलियों,
सड़कों, पार्कों, कालेजों, ऑफिसों
सोशल मीडिया पर अपना नया
शिकार तलाश कर रहे हैं
और प्रेम पुनः अपने
नए आवरण में अपनी गर्दनों को
पोषित कर रहा…
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